चराग़े-दिल

क्या बताऊँ तुम्हें मैं कैसी हूँ
पीती रहती हूँ फिर भी प्यासी हूँ।

तुम इन्हें अश्क मत समझ लेना
बनके आँसू मैं खुद ही बहती हूँ।

सामना उनसे हो नहीं सकता
बस इसी से उदास रहती हूँ।

भर गया दिल मेरा तो अपनों से
अब तो गैरों की राह चलती हूँ।

मेरी फ़ितरत अजीब है ‘देवी’
कोई तड़पे तो मैं तड़पती हूँ।

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