चराग़े-दिल

हक़ीक़त में हमदर्द है वो हमारा
बुरे वक़्त में आके दे जो सहारा।

कभी साहिलों से भी उठते हैं तूफां
कभी मौज़े-तूफां में पाया किनारा।

दबी चीख़ जब भी सुनी हसरतों की
कभी आँख रोई, कभी दिल हमारा।

ये किस मोड़ पर ज़िंदगी लेके आई
खुशी है गवारा, न ग़म है गवारा।

कभी बद्दुआओं ने दी ज़िंदगानी
कभी तो तुम्हारी दुआओं ने मारा।

मेरी ज़िंदगी में बहार आ रही है
तुम्हारे तबस्सुम ने शायद पुकारा।

मुझे डर है देवी तो बस दोस्तों से
मुझे दुशमनों ने दिया है सहारा।

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