चराग़े-दिल

ज़िंदगी इस तरह से जीता हूँ
जैसे हर वक़्त ज़हर पीता हूँ।

हाल दिल का सुनाके क्या हासिल
क्या करूँ अपने होंठ सीता हूँ।

ऐसा जीना भी कोई जीना है
रोज़ मरता हूँ, रोज़ जीता हूँ।

इल्म अपना हुआ तो जाना है
मैं ही कुरआन, मैं ही गीता हूँ।

है अयोध्या बसी मेरे मन में
वो तो है राम, मैं तो सीता हूँ।

दर्द साँझा जो सबका है ‘देवी’
मैं वही दर्द लेके जीता हूँ।

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