चराग़े-दिल

अपने जवान हुस्न का सदक़ा उतार दे
दर्शन दे एक बार मुक़द्दर सँवार दे।

जो खिल उठें गुलाब मेरे दिल के बाग़ में
रब्बा, मेरे नसीब में ऐसी बहार दे।

अच्छा तो मेरे क़त्ल में मेरा ही हाथ था
आ सारी तुहमतें तू मेरे सर पे मार दे।

इक जामे-‍बेख़ुदी की है दरकार आजकल
हर ग़म को भूल जाऊँ मैं, ऐसा ख़ुमार दे।

मोहलत ज़रा सी दे मुझे लौटूँ अतीत में
दो चार पल के वास्ते दुनियाँ सँवार दे।

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