चराग़े-दिल

भटके हैं तेरी याद में जाने कहाँ कहाँ।
तेरी नज़र के सामने खोये कहाँ कहाँ।
 
रिश्तों की डोर में बँधे जाते कहाँ कहाँ
उलझन में राहतें कोई ढूँढे कहाँ कहाँ।
 
ख़ाहिश की कै़द में सदा जीवन किया बसर
अब उसके रास्ते खुले जाके कहाँ कहाँ।
 
ऐ ज़िंदगी सवाल तू, तू ही जवाब है
तुझसे मिलन की आस में भटके कहाँ कहाँ।
 
क़दमों के क्यों मिटा दिये उसने निशां तमाम
हम उनकी पैरवी में भी जाते कहाँ कहाँ।
 
है दाग़ दाग़ दिल मेरा, मुस्कान होंठ पर
रौशन हुए हैं रास्ते, दिल के कहाँ कहाँ।
 
वो लामकां में रहता है, अपनी बिसात क्या
हम लामकां को ढूँढते फिरते कहाँ कहाँ।
 
‘देवी’ न मुझसे पूछिये कुछ ख़ुद को देखिये
होते है इस जहान में झगड़े कहाँ कहाँ।

<< पीछे : न सावन है न भादों है न बादल का… आगे : जो मुझे मिल न पाया रुलाता रहा >>

लेखक की कृतियाँ

साहित्यिक आलेख
कहानी
अनूदित कहानी
पुस्तक समीक्षा
बात-चीत
ग़ज़ल
अनूदित कविता
पुस्तक चर्चा
बाल साहित्य कविता
विडियो
ऑडियो