चराग़े-दिल

ख़ुशी का भी छुपा ग़म में कभी सामान होता है
कभी ग़म में ख़ुशी मिलने का भी इमकान होता है।
 
हुई है आँख मेरी नम भरी महफ़िल में जाने क्यों
यहाँ जज़बात से हर शख़्स ही अनजान होता है।
 
गिला तुमने किया मुझसे, समझ पाई नहीं तुमको
समझ पाना तो खुद को भी, कहाँ आसान होता है।
 
ज़माना खुद फ़रेबी है, हक़ीक़त से नहीं वाकिफ़
यहाँ हर सच को झुठलाना बड़ा आसान होता है।
 
वही मक्कार होता है करे गुमराह जो सबको
जो ख़ुद को ही छले अक्सर, बड़ा नादान होता है।
 
सहर हो, शाम हो या रात, तन्हाई है रहे कायम
करूँ क्या भीड़ को जब दिल मेरा वीरान होता है।
 
ख़ुशी में आके हर कोई बटोरेगा ख़ुशी देवी
मुसीबत में जो काम आए वही इन्सान होता है।

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