चराग़े-दिल

कितने पिये हैं दर्द के, आँसू बताऊँ क्या
ये दास्ताने-ग़म भी किसी को सुनाऊँ क्या?

 

रिश्तों के आईने में दरारें हैं पड़ गईं
अब आईने से चेहरे को अपने छुपाऊँ क्या?

 

दुश्मन जो आज बन गए, कल तक तो भाई थे
मजबूरियाँ हैं मेरी, मैं उनसे छुपाऊँ क्या?

 

चारों तरफ़ से तेज़ हवाओं में हूँ घिरी
इन आँधियों के बीच में दीपक जलाऊँ क्या?

 

दीवानगी में कट गए मौसम बहार के
अब पतझड़ों के ख़ौफ़ से दामन बचाऊँ क्या?

 

साज़िश ख़िलाफ़ मेरे दोस्तों की थी
इल्ज़ाम दुशमनों पे मैं ‘देवी’ लगाऊँ क्या?

<< पीछे : कविता क्या है? : देवी नागरानी आगे : दीवारो-दर थे, छत थी वो अच्छा मकान… >>

लेखक की कृतियाँ

साहित्यिक आलेख
कहानी
अनूदित कहानी
पुस्तक समीक्षा
बात-चीत
ग़ज़ल
अनूदित कविता
पुस्तक चर्चा
बाल साहित्य कविता
विडियो
ऑडियो