चराग़े-दिल

ज़माने से रिश्ता बनाकर तो देखो
समझ- बूझ से तुम निभाकर तो देखो।
 
किया है जो नफ़रत ने पैदा दिलों में
वो अंतर दिलों से मिटाकर तो देखो।
 
तुम्हें देखकर क्यों लजाता है शीशा
कभी अपनी पलकें उठाकर तो देखो।
 
गिराते हो अपनी नज़र से जिन्हें तुम
उन्हें पलकों पर भी बिठाकर तो देखो।
 
उठाना है आसान औरों पे उंगली
कभी खुद पे उंगली उठाकर तो देखो।
 
ये सेहत का नुस्ख़ा है बरसों पुराना
मिलावट से खुद को बचाकर तो देखो।
 
न घबराओ ‘देवी’ ग़मों से तुम इतना
ज़रा इनसे दामन सजाकर तो देखो।

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