चराग़े-दिल

रेत पर घर जो अब बनाया है
अपनी किस्मत को आज़माया है।
 
रिश्ता इस तरह से निभाया है
अपना होकर भी वो पराया है।
 
मैं सितारों से बात करती थी
बीच में चाँद क्योंकर आया है।
 
आज का हाल देख मुस्तक़बिल
कौन माज़ी को देख पाया है।
 
बात जब अनसुनी रही मेरी
ख़ामशी को गले लगाया है।
 
क़त्ल उसने किया है तो फिर क्यों
सर पे इल्ज़ाम मेरे आया है।
 
रिश्ता वो ही निभाएगा ‘देवी’
जिसको रिश्ता समझ में आया है।

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