चराग़े-दिल

न सावन है न भादों है न बादल का ही साया है
मेरे अश्कों से लेकिन एक इक ज़र्रा नहाया है।
 
जिसे तू देख कर घबरा रहा है ऐ मेरे हमदम
नहीं है ये तेरा दुश्मन, ये तेरा ही तो साया है।
 
जो बरसों से सजाकर थी रखी तस्वीर आँखों में
उसी तस्वीर ने मेरा सुकूने-दिल चुराया है।
 
ज़माने में कहाँ होती हैं पूरी चाहतें सबकी
मुकम्मल कौन-सी शै है, किसीने जिसको पाया है।
 
हुईँ नम क्यों ये आँखें बैठकर इस बज्म में ‘देवी’
किसीने ग़म को सुर और ताल में गा कर सुनाया है।

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