चराग़े-दिल

मिलने की हर खुशी में बिछड़ने का ग़म हुआ
फिर भी हमें ख़ुशी थी, कि उनका करम हुआ।

नज़रें मिलीं तो मिलते ही झुकती चली गईं
फिर भी हया का बोझ न कुछ उनपे कम हुआ।

कुछ और भी गुलाब थीं आँखें ख़ुमार में
कुछ और भी हसीन वो मेरा सनम हुआ।

कुछ तो चढ़ा था पहले ही हम पर नशा, मगर
कुछ आपका भी सामने आना सितम हुआ।

आती नहीं है प्यार की ख़ुशबू कहीं से अब
खिलना ही जैसे प्यार के फूलों का कम हुआ।

नज़रों से बहुत दूर था चाहत भरा नगर
फिर भी वो आस पास था ऐसा भरम हुआ।

‘देवी’ वफ़ा पे जिसकी हमें नाज़ था बहुत
वो बेवफ़ा हुआ तो, बहुत हमको ग़म हुआ।

<< पीछे : हम अभी से क्या बताएँ आगे : जो मुझे मिल न पाया रुलाता रहा >>

लेखक की कृतियाँ

साहित्यिक आलेख
कहानी
अनूदित कहानी
पुस्तक समीक्षा
बात-चीत
ग़ज़ल
अनूदित कविता
पुस्तक चर्चा
बाल साहित्य कविता
विडियो
ऑडियो