चराग़े-दिल

उड़ गए बालो-पर उड़ानों में
सर पटकते हैं आशियानों में।

जल उठेंगे चराग़ पल भर में
शिद्दतें चाहिये तरानों में।

नज़रे बाज़ार हो गए रिश्ते
घर बदलने लगे दुकानों में।

धर्म के नाम पर हुआ पाखंड
लोग जीते हैं किन गुमानों में।

कट गए बालो-पर, मगर हमने
नक़्श छोड़े हैं आसमानों में।

वलवले सो गए जवानी के
जोश बाक़ी नहीं जवानों में।

बढ़ गए स्वार्थ इस क़दर ‘देवी’
एक घर बंट गया घरानों में।

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