चराग़े-दिल

रेत पर तुम बनाके घर देखो
कैसे ले जायेगी लहर देखो।

सारी दुनिया ही अपनी दुशमन है
कैसे होगी गुज़र-बसर देखो।

शब की तारीकियाँ उरूज पे हैं
कैसे होती है अब सहर देखो।

खामुशी क्या है तुम समझ लोगे
पत्थरों से भी बात कर देखो।

वो मेरे सामने से गुज़रे हैं
मुझसे हों जैसे बेख़बर देखो।

रूह आज़ाद फिर भी कैद रहे
तन में भटके हैं दर- बदर देखो।

सोच की शम्अ बुझ गई ‘देवी’
दिल की दुनियाँ में डूबकर देखो।

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