चराग़े-दिल

दर्द से दिल सजा रहे हो क्यों
ज़ख़्म दिल के दिखा रहे हो क्यों?
 
इक बयाबां है सामने फिर भी
दिल की बस्ती बसा रहे हो क्यों?
 
तुम हो बौने पहाड़ के आगे
अपना क़द फिर बढ़ा रहे हो क्यों?
 
पास ही तो तुम्हारी मंज़िल है
दूर साहिल से जा रहे हो क्यों?
 
दिल की कश्ती भंवर में डूब गई
साथ खुद को डुबो रहे हो क्यों?
 
तंग सोचें हैं तंग राहें भी
ऐसी गलियों से जा रहे हो क्यों?
 
जो तुम्हारा न बन सका ‘देवी’
उसको ख़्वाबों में ला रहे हो क्यों?

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