चराग़े-दिल

देते हैं ज़ख़्म ख़ार तो देते महक गुलाब
फिर भी मैं तोड़ लाई हूँ, उनको अजी जनाब।

कोई समझ न पाए तो फिर ज़िंदगी सवाल
गहराइयों में उसकी है हर बात का जवाब।

पढ़ती पढ़ाती ही रही नादान मैं गँवार
ऐ ज़िंदगी, न पढ़ सकी तेरी कभी किताब।

उलझो न आँधियों से कभी, मात खाओगे
सीना न तान कर चलो मौसम है अब ख़राब।

है सल्तनत का शौक, नशीली शराब-सा
लोगों के वोट जीत के बनते रहे नवाब।

इक आरज़ू है दिल में फ़कत उसके दीद की
मेरा हबीब क्यों नहीं आता है बेहिजाब।

‘देवी’, बहुत सुना किये हम राग रागिनी
मदहोश जो करे वही घट में बजे रबाब।

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