चराग़े-दिल

हमने चाहा था क्या और क्या दे गई
ग़म का पैग़ाम बादे-सबा दे गई।

मुस्कराहट को होटों से दाबे रक्खा
मेरी नीची नज़र ही दग़ा दे गई।

मौत से कम नहीं तेरी चाहत, के जो
जीते रहने की हमको सज़ा दे गई।

आके इक मौज हल्की सी साहिल पे आज
आना वाला है तूफाँ पता दे गई।

हम झुलसते रहे हिज्र की आग में
ज़िंदगी मुझको देवी सज़ा दे गई।

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