चराग़े-दिल

देख कर तिरछी निगाहों से वो मुस्काते हैं
जाने क्या बात मगर करने से शरमाते हैं।

मेरी यादों में तो वो रोज़ चले आते हैं
अपनी आँखों में बसाने से वो कतराते हैं।

दिल के गुलशन में बसाया था जिन्हें कल हमने
आज वो बनके ख़लिश ज़ख्म दिये जाते हैं।

बेवफ़ा मैं तो नहीं हूँ ये उन्हें है मालूम
जाने क्यों फिर भी मुझे दोषी वो ठहराते हैं।

मेरी आवाज़ उन्होंने भी सुनी है, फिर क्यों
सामने मेरे वो आ जाने से करताते हैं।

दिल के दरिया में अभी आग लगी है जैसे
शोले कैसे ये बिना तेल लपक जाते हैं।

रँग दुनियाँ के कई देखे है देवी लेकिन
प्यार के इँद्रधनुष याद बहुत आते हैं।

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