चराग़े-दिल

ताज़गी कुछ नहीं हवाओं में
फ़स्ले‍‌‍‍‍‍‌‌-ग़ुल जैसे है खिज़ाओं में।

 

हम जिसे मन की शांति हैं कहते,
वो तो मिलती है प्रार्थनाओं में।

 

यूँ तराशा है उनको शिल्पी ने
जान- सी पड़ गई शिलाओं में।

 

जो उतारी थीं दिल में तस्वीरें
वो अजंता की है गुफाओं में।

 

सच की आवाज़ ही जहां वालो,
खो गई वक्त की सदाओं में।

 

तू कहाँ ढूँढने चली ‘देवी’
बू वफ़ाओं की बेवफ़ाओं में।

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