चराग़े-दिल

सपने कभी आँखों में बसाए नहीं हमने
बेकार के ये नाज़ उठाए नहीं हमने।

दौलत को तेरे दर्द की रक्खा सहेज कर
मोती कभी पलकों से गिराए नहीं हमने।

आई जो तेरी याद तो लिखने लगी गज़ल
रो रो के गीत औरों को सुनाए नहीं हमने।

है सूखा पड़ा आज तो, कल आयेगा सैलाब
ख़ेमे किसी भी जगह लगाए नहीं हमने।

इतने फ़रेब खाए हैं ‘देवी’ बहार में
जूड़े में गुलाब अब के लगाये नहीं हमने।

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