चराग़े-दिल

मेरा शुमार कर लिया नज़ारों में जाने क्यों
लाकर खड़ा किया है सितारों में जाने क्यों?

गुलशन में रहके ख़ार मिले मुझको इस क़दर
अब तो खिज़ां लगे है बहारों में जाने क्यों?

वैसे तो बात होती है उनसे मेरी सदा
पर आज कह रहे हैं इशारों में जाने क्यों?

सौ सौ को जो तरसते रहे उम्र भर सदा
होती है उनकी गिनती हज़ारों में जाने क्यों?

गै़रत वहाँ मिली है जहां ढूँढा अपनापन
देखी न पुख़्तगी ही सहारों में जाने क्यों।

वादे वही रहे हैं, वफ़ाएँ वही रहीं
उठ-सा गया यक़ीन ही यारों में जाने क्यों?

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