चराग़े-दिल

वो रूठा रहेगा उसूलों से जब तक
नसीब उसके राजी न हों उससे तब तक।
 
कदम हर कदम आज़माइश है मेरी
मुझे इम्तहानों में रक्खोगी कब तक।
 
गुनह करके जीना बहुत ही कठिन है
कचोटे-ज़मीर उसका उसको न जब तक।
 
खुशी और ग़म मुझको यकसाँ रहे हैं
न आया कभी कोई शिकवा भी लब तक।
 
सदा पीठ पर ज़ख़्म खाए हैं देवी
ये तोहफे़ मिले मुझको अपनों से अब तक।

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