चराग़े-दिल

सुनामी की ज़द में रही जिंदगानी
बहाती रहीं अश्क आँखें दिवानी।

हुईं धुंधली शक्लें ख़ुद अपनी नज़र में
हुई ख़त्म जेसे सुहानी कहानी।

भयानक वो मंजर, वो ख़ूंखार लहरें
था जब खून का प्यासा बारिश का पानी।

बुने ख्वाब, और कितने अरमाँ सजाए
सभी बह गये आँख से बन के पानी।

दबी खौफ से चीख सीने के अंदर
जो मौजों की देखी भयानक रवानी।

कई बह गये ‘देवी’ सपने सुहाने
वो बारिश थी या आफ़ते नागहानी।

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