चराग़े-दिल

गर्दिशों ने बहुत सताया है
हर क़दम पर ही आज़माया है।

दफ़्न हैं राज़ कितने सीने में
हर्फ़ लब पर कभी न आया है।

मुझको हँस हँस के मेरे साक़ी ने
उम्र भर ज़हर ही पिलाया है।

ज़ोर मौजों का खूब था लेकिन
कोई कश्ती निकाल लाया है।

मुस्कराया है इस अदा से वो
जैसे ख़त का जवाब आया है।

बनके अनजान उसने फिर मेरे
दिल के तारों को झन-झनाया है।

मुझको ठहरा दिया कहाँ ‘देवी’
सर पे छत है न कोई साया है।

<< पीछे : तू न था कोई और था फिर भी आगे : दर्द बनकर समा गया दिल में >>

लेखक की कृतियाँ

साहित्यिक आलेख
कहानी
अनूदित कहानी
पुस्तक समीक्षा
बात-चीत
ग़ज़ल
अनूदित कविता
पुस्तक चर्चा
बाल साहित्य कविता
विडियो
ऑडियो