चराग़े-दिल

गुज़रे हुए सुलूक पे सोचो न इस क़दर
महमान बनके रहना, जो रहना है मेरे घर।

जो दिल में है तुम्हारे, छुपाओ गिला नहीं
सब कुछ बता रही है तुम्हारी ये चश्मे-तर।

फ़न सीखने की आरज़ू पूरी हो किस तरह
भटकी हुई है सोच मेरी आज दरबदर।

तुम दे सको दुआ न अगर, बददुआ न दो
हमने सुना है उलटा भी हो जाता है असर।

दरिया ये दिल के दर्द का करने चली हूँ पार
कब इसमें डूब जाऊँ मैं, रहता है इसका डर।

‘देवी’ बता दिया था उन्हें राज़ दर्द का
थे ऐसे राज़दार कि सबको हुई ख़बर।

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