चराग़े-दिल

चलें तो चलें फिक्र की आँधियाँ
न छोड़ो कभी जीस्त की बाजियाँ।
 
न मंज़िल पे पहुँचे अगर ये कदम
तो रफ्तार की समझो कमज़ोरियाँ।
 
चिता का दिया है सदा हाथ में
हैं फिरते जहां में लिये अर्थियाँ।
 
सफ़र तो सफ़र है कठिन या सरल
न मंजिल की देखो कभी दूरियाँ।
 
सहारों के जुगनू चमकते रहें
भले आज़माए हमें आँधियाँ।
 
रकीबों से ‘देवी’, कभी दोस्ती
निभाओ तो समझोगी कठिनाइयाँ।

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