चराग़े-दिल (रचनाकार - देवी नागरानी)
यूँ उसकी बेवफ़ाई का मुझको गिला न थायूँ उसकी बेवफ़ाई का मुझको गिला न था
इक मैं ही तो नहीं जिसे सब कुछ मिला ना था।
लिपटे हुए थे झूठ से कोई सच्चा न था
खोटे तमाम सिक्के थे, इक भी खरा न था।
उठता चला गया मेरी सोचों का कारवां
आकाश की तरफ़ कभी, वो यूँ उड़ा न था।
माहौल था वही सदा, फि़तरत भी थी वही
मजबूर आदतों से था, आदम बुरा न था।
जिस दर्द को छुपा रखा मुस्कान के तले
बरसों में एक बार भी कम तो हुआ न था।
ढोते रहे है बोझ सदा तेरा ज़िंदगी
जीने में लुत्फ़ क्यों कोई बाक़ी बचा न था।
कितने नकाब ओढ़ के देवी दिये फरेब
जो बेनकाब कर सके वो आईना न था।
विषय सूची
- अहसास की रोशनी- 'चराग़े-दिल' : समीक्षकः मा.ना.नरहरि
- चराग़े-दिल - कुछ विचार
- कविता क्या है? : देवी नागरानी
- कितने पिये हैं दर्द के, आँसू बताऊँ क्या
- दीवारो-दर थे, छत थी वो अच्छा मकान था
- देखकर मौसमों के असर रो दिये
- उड़ गए बालो-पर उड़ानों में
- आँधियों के भी पर कतरते हैं
- ताज़गी कुछ नहीं हवाओं में
- या बहारों का ही ये मौसम नहीं
- डर उसे फिर न रात का होगा
- बारिशों में बहुत नहाए हैं
- लबों पर गिले यूँ भी आते रहे हैं
- तारों का नूर लेकर ये रात ढल रही है
- अपने जवान हुस्न का सदक़ा उतार दे
- बाक़ी न तेरी याद की परछाइयाँ रहीं
- सपने कभी आँखों में बसाए नहीं हमने
- कैसे दावा करूँ मैं
- झूठ सच के बयान में रक्खा
- तू न था कोई और था फिर भी
- गर्दिशों ने बहुत सताया है
- दर्द बनकर समा गया दिल में
- छीन ली मुझसे मौसम ने आज़ादियाँ
- चराग़ों ने अपने ही घर को जलाया
- हिज्र में उसके जल रहे जैसे
- तेरे क़दमों में मेरा सजदा है
- दिल को हम कब उदास रखते हैं
- ख़्यालों ख़्वाब में ही महफिलें सजाता है
- हमने चाहा था क्या और क्या दे गई
- चोट ताज़ा कभी जो खाते हैं
- वो अदा प्यार भरी याद मुझे है अब तक
- ठहराव ज़िंदगी में दुबारा नहीं मिला
- जाने क्या कुछ हुई ख़ता मुझसे
- अँधेरी गली में मेरा घर
- ये सायबां है जहां, मुझको सर छुपाने दो
- ख़ता अब बनी है सज़ा का फ़साना
- बहता रहा जो दर्द का सैलाब था न कम
- बुझे दीप को जो जलाती रही है
- कोई षडयंत्र रच रहा है क्या
- तर्क कर के दोस्ती फिरता है क्यों
- कितने आफ़ात से लड़ी हूँ मैं
- यूँ उसकी बेवफ़ाई का मुझको गिला न था
- रिश्ता तो सब ही जताते हैं
- बहारों का आया है मौसम सुहाना
- राज़ दिल में छिपाए है वो किस कदर
- नहीं उसने हरगिज रज़ा रब की पाई
- दीवार दर तो ठीक थे, बीमार दिल वहाँ
- हक़ीक़त में हमदर्द है वो हमारा
- सोच को मेरी नई वो इक रवानी दे गया
- सोच की चट्टान पर बैठी रही
- बिजलियाँ यूँ गिरीं उधर जैसे
- सुनामी की ज़द में रही जिंदगानी
- कैसी हवा चली है मौसम बदल रहे हैं
- कितनी लाचार कितनी बिस्मिल मैं
- किसी से कभी बात दिल की न कहना
- ज़िंदगी इस तरह से जीता हूँ
- क्या बताऊँ तुम्हें मैं कैसी हूँ
- कुछ तो इसमें भी राज़ गहरे हैं
- बेसबब बेरुख़ी भी होती है
- बंद हैं खिड़कियाँ मकानों की
- ज़िंदगी रंग क्या दिखाती है
- ज़माने से रिश्ता बनाकर तो देखो
- नगर पत्थरों का नहीं आशना है
- रेत पर घर जो अब बनाया है
- चलें तो चलें फिक्र की आँधियाँ
- दर्द से दिल सजा रहे हो क्यों
- स्वप्न आँखों में बसा पाए न हम
- देखी तबदीलियाँ जमानों में
- लगती है मन को अच्छी
- ज़िंदगी मान लें बेवफ़ा हो गई
- पंछी उड़ान भरने से पहले ही डर गए
- ग़म के मारों में मिलेगा, तुमको मेरा नाम भी
- वो रूठा रहेगा उसूलों से जब तक
- जितना भी बोझ हम उठाते हैं
- जो मुझे मिल न पाया रुलाता रहा
- ख़ुशी का भी छुपा ग़म में कभी सामान होता है
- हैरान है ज़माना, बड़ा काम कर गए
- न सावन है न भादों है न बादल का ही साया है
- भटके हैं तेरी याद में जाने कहाँ कहाँ
- हम अभी से क्या बताएँ
- मिलने की हर खुशी में बिछड़ने का ग़म हुआ
- गुज़रे हुए सुलूक पे सोचो न इस क़द
- देते हैं ज़ख़्म ख़ार तो देते महक गुलाब
- किस्मत हमारी हमसे ही माँगे है अब हिसाब
- आँसुओं का रोक पाना कितना मुश्किल हो गया
- कौन किसकी जानता है आजकल दुश्वारियाँ
- साथ चलते देखे हमने हादसों के काफ़िले
- मेरा शुमार कर लिया नज़ारों में जाने क्यों
- शहर में उजड़ी हुई देखी
- क्यों मचलता है माजरा क्या है
- क्यों खुशी मेरे घर नहीं आती
- मेरा वजूद टूटके बिखरा यहीं कहीं
- रेत पर तुम बनाके घर देखो
- दोस्तों का है अजब ढब, दोस्ती के नाम पर
- उस शिकारी से ये पूछो पर क़तरना भी है क्या
- देख कर तिरछी निगाहों से वो मुस्काते हैं
- मेरे वतन की ख़ुशबू
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- अब ख़ुशी की हदों के पार हूँ मैं
- उस शिकारी से ये पूछो
- चढ़ा था जो सूरज
- ज़िंदगी एक आह होती है
- ठहराव ज़िन्दगी में दुबारा नहीं मिला
- बंजर ज़मीं
- बहता रहा जो दर्द का सैलाब था न कम
- बहारों का आया है मौसम सुहाना
- भटके हैं तेरी याद में जाने कहाँ कहाँ
- या बहारों का ही ये मौसम नहीं
- यूँ उसकी बेवफाई का मुझको गिला न था
- वक्त की गहराइयों से
- वो हवा शोख पत्ते उड़ा ले गई
- वो ही चला मिटाने नामो-निशां हमारा
- ज़माने से रिश्ता बनाकर तो देखो
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