चराग़े-दिल

अँधेरी गली में मेरा घर रहा है
जहाँ तेल-बाती बिना इक दिया है।

जो रौशन मेरी आरज़ू का दिया है
मेरे साथ वो मेरी माँ की दुआ है।

अजब है, उसी के तले है अँधेरा
दिया हर तरफ़़ रौशनी बाँटता है।

यहाँ मैं भी मेहमान हूँ और तू भी
यहाँ तेरा क्या है, यहाँ मेरा क्या है।

खुली आँख में खाहिशों का समुंदर
न अंजाम जिनका कोई जानता है।

जहाँ देख पाई न अपनी ख़ुदी मैं
न जाने वहीं मेरा सर क्यों झुका है।

तुझे वो कहाँ ‘देवी’ बाहर मिलेगा
धड़कते हुए दिल के अंदर खुदा है।

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