चराग़े-दिल

चोट ताज़ा कभी जो खाते हैं
ज़ख्मे-‍‌दिल और मुस्कराते हैं।
 
मयकशी से ग़रज़ नहीं हमको
तेरी आँखों में डूब जाते हैं।
 
जिनको वीरानियों ही रास आईं
कब नई बस्तियाँ बसाते हैं।
 
शाम होते ही तेरी यादों के
दीप आँखों में झिलमिलाते हैं।
 
कुछ तो गुस्ताख़ियों को मुहलत दो
अपनी पलकों को हम झुकाते हैं।
 
तुम तो तूफां से बच गई देवी
लोग साहिल पे डूब जाते हैं।

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