चराग़े-दिल

चराग़ों ने अपने ही घर को जलाया
कि हैरां है इस हादसे पर पराया।
 
किसी को भला कैसे हम आज़माते
मुक़द्दर ने हमको बहुत आज़माया।
 
दिया जो मेरे साथ जलता रहा है
अँधेरा उसी रौशनी का है साया।
 
रही राहतों की बड़ी मुंतज़िर मैं
मगर चैन दुनियाँ में हरगिज़ न पाया।
 
संभल जाओ अब भी समय है ऐ ‘देवी’
क़यामत का अब वक़्त नज़दीक आया।

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