चराग़े-दिल

स्वप्न आँखों में बसा पाए न हम
आँसुओं से भी सजा पाए न हम।
 
किस गिरावट ने हमें ऊँचा किया
कोई अंदाज़ा लगा पाए न हम।
 
दर्द के आँसू बहुत हमने पिये
गै़र का अहसाँ उठा पाए न हम।
 
हमने अश्कों से लिखी थी जो ग़ज़ल
दुख है ये तुमको सुना पाए न हम।
 
आईना अपनी ही सब कहता रहा
हाले-दिल अपना सुना पाए न हम।
 
आज़माए हौसले हमने सदा
छू बुलँदी को कभी पाए न हम।

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