चराग़े-दिल (रचनाकार - देवी नागरानी)
चराग़े-दिल - कुछ विचारश्री गणेश बिहारी "तर्ज़" लखनवी
Sheetal 1st floor
Lokhandwala, Mumbai
22 April, 2007
श्री गणेश बिहारी "तर्ज़" लखनवी साहिब ने 'चराग़े-दिल' के लोकार्पण के समय श्रीमती देवी नागरानी जी के इस गज़ल-संग्रह से मुतासिर होकर बड़ी ही ख़ुशबयानी से उनकी शान में एक कत्ता स्वरूप नज़्म तरन्नुम में सुनाई जिसके अल्फ़ाज़ हैं:
लफ्ज़ों की ये रानाई मुबारक तुम्हें देवी
रिंदी में पारसाई मुबारक तुम्हें देवी
फिर प्रज्वलित हुआ 'चराग़े-दिल' देवी
ये जशने रुनुमाई मुबारक तुम्हें देवी।
अश्कों को तोड़ तोड़ के तुमने लिखी गज़ल
पत्थर के शहर में भी लिखी तुमने गज़ल
कि यूँ डूबकर लिखी के हुई बंदगी गज़ल
गज़लों की आशनाई मुबारक तुम्हें देवी
ये जशने रुनुमाई मुबारक तुम्हें देवी।
शोलों को तुमने प्यार से शबनम बना दिया
एहसास की उड़ानों को संगम बना दिया
दो अक्षरों के ग्यान का आलम बना दिया
'महर्षि' की रहनुमाई मुबारक तुम्हें देवी
ये जशने रुनुमाई मुबारक तुम्हें देवी।
एक जुनून, एक लगन का नाम है देवी नागरानी
राम जवाहरानी
Chairman of SahyoG Foundation
2 Bhagat Society
Plot 417/B, 14th Road
Bandra, Mumbai 50।
श्री राम जवाहरानी ने इस लेखन कला को अपने नज़रिये से परखते हुए कहाः
" मंच पर बैठे साहित्य के सभी महारथ व वरिष्ठ कवि गण की हाज़िरी में यह कहने में कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी कि देवीजी का यह पहला कदम उनके जुनून, एक लगन, एक दिवाने पन की पेशकश है, जिसके माध्यम से उन्होंने अपनी भावनाओं, अपनी उमंगों को, अपनी जज़्बात को शब्दों के माध्यम से ज़माने तक पहुँचाने का बख़ूबी प्रयास किया है। उन्होंने अपनी सोच को शब्दों के साथ साथ निहायत ही अजब ढंग से इन्सानी भावनाओं को पेश किया है जो काबिले तारीफ है। सोच का निराला अंदाज़ है, शब्दों का खेल भी निराला। कई अंदाज, से शम्अ परवाने की बात का ज़िक्र आया है, लिखा व पढ़ा गया है, पर गौर से सुनें देवीजी क्या कहती है, किस कदर निराले अंदाज, से कम शब्दों में पेश किया है, जिससे साफ़ ज़ाहिर होता है वह ग़ज़ल की लेखन कला से बख़ूबी वाकिफ़ है।"
उसे इश्क क्या है पता नहीं
कभी शम्अ पर वो जला नहीं।
न बुझा सकेंगी ये आँधियाँ
ये चराग़े दिल है दिया नहीं।
कल ही की बात है जब देवी नागरानी जी सिंधी साहित्य में अपनी कलम के ज़ोर से अपनी जान पहचान पाने लगी। वे कहानी, गीत गज़ल पर अपनी कलम आज़मा चुकी है, पर हिंदी में चराग़े-दिल का प्रकाशन पुख़्तगी से रक्खा हुआ उनका पहला कदम है हिंदी साहित्य जगत में, जो काबिले तारीफ है। मैं आशा करता हूँ कि पुख़्तगी से रक्खा गया उनका यह पहला उनका यह पहला कदम उनकी आने वाली हर राह को रोशन करता रहे।
मेरी दिल से मुबारकबाद है उन्हें इस सफल प्रयास पर।
'चराग़े-दिल' की रोशनी में श्रीमती देवी नगरानी -
श्याम जुमानी हैदराबाद।
जब यह गज़ल संग्रह मेरे हाथ आया तो पहले मैं इस उन्वान को देखता रहा। और फिर उस दिल फ़रेब कवर पेज के चराग़ों को जो बहुत कुछ कह रहे है:
न बुझा सकेंगी ये आंधियाँ
ये च़राग़े-दिल है दिया नहीं।
तजुरबों के दौर से गुज़र कर उन्होंने जिन अहसासात को बयान किया है वो कहीं न कहीं जाकर हमारे तुम्हारे बन जाते हैं। इन गर्दिशों के दौर में शोर के बीच तन्हाइयों को महसूस करती हुई ये भावनाएँ देखिये:
बाकी न तेरी याद की परछाइयाँ रहीं
बस मेरी जिंदगी में ये तन्हाइयां रहीं। प ३९
सोच की उड़ान, बेजान में जान फूँकने की बात किस कदर इस शेर से बख़ूबी बयां हो रही है देखिये एक अलग अंदाज़:
यूं तराशा है उनको शिल्पी ने
जान सी पड़ गई शिलाओं में। प २
इस फ़न को सीखने की चाह में देवीजी ने अपने शब्दों के स्वरूप में जान फूँकने का सफल प्रयास किया है और छोटे बहर में एक नाजुक ख़याल को बरपा करना एक काब़िल कदम है। दुख दर्द से हमारी पहचान तो होती है पर इनका अंदाज़े-बयां देखिये, कहती हैं :
दुख दर्द हैं ऐसे महमां जो
आहट के बिन आ जाते हैं।
हर अहसास को शब्दों के माध्यम से सुंदरता से बेजोड़ बना के प्रस्तुत किया है देवीजी ने, दूर की सोच नज़दीकियों को कम करती हुई दिखाई देती है, कहीं दूरियों में फासले बढ़ाते हुए अहसास किस कदर दर्शा रहीं है वे, सुनें उनकी ज़ुबानी:
बदगुमानी का ज़हर है ऐसा
सब हरे पेड़ सूख जाते हैं। प १२२
कतरा कतरा वजूद से लेकर
ख़्वाहिशों को लहू पिलाते हैं। प १२२
मेरी शुभकामनायें उनके साथ है कि उनका यह पहला प्रयास एक मुकम्मिल कदम साबित हो और वो ऐसे अनेक चराग़ रौशन करती रहें।
अहसासों का तेज़ाबः देवी नागरानी
डॉ. संगीता सहजवानी
अध्यक्षः हिंदी विभाग,
आर.डी. नैशनल कालेज
701-702 Kavita Co-op Society
15th Road, Bandra,
Mumbai 400050
'चराग़े-दिल' गज़ल संग्रह पढ़कर जो महसूस किया मैंने वही लिखा। देवी के गज़लों के हर शेर से बूँद बूँद टपकता है अहसासों का तेज़ाब जिसमें हर इन्सान पा सकता है अपने सवालों का जवाब। कैसे दीवारो-दर छत का अच्छा मकान, यादों की भरी दुनियां का कब्रिस्तान बन जाता है, और एक हिम्मतवर इन्सान उसमें किसी दिये से नहीं 'चराग़े-दिल' से रौशनी करके मुकाबला करता है। हर नई चोट को मुस्कराता-ज़ख़्म बना लेता है और इस ज़ख्मे दिल के बहते लहू की बूँद बूँद से जो शेर कहता है उसमें प्रेम है, बेबसी है, मायूसी है, हौसला है, नसीहत है। जिंदगी का हर रंग है, पर इन सबसे परे वह इन्सान देवी नागरानी अपने भीतर ही भीतर एक और सफर कर रही दिखाई देती है। यह रूहानी सफ़र है जहाँ उसे इन्तज़ार है:
इक आरज़ू है दिल में फ़कत उसके दीद की
मेरा हबीब क्यों नहीं आता है बेहिजाब?
शाइरी में सादगी और संजीदगीः -मोना हैदराबादी, हैदराबाद
सादगी और संजीदगी नज़र आती है देवीजी की शायरी में। जिंदगी की कशमकश को खूब पहचानती हैं और उनसे मुकाबला करने का हुनर भी जानती हैं, बुलंदियों को छूते हुए वो क्या कहती है ज़रा सुनें:
कभी साहिलों से भी उठते है तूफां
कभी मौजे-तुफां में पाया किनारा।
जिंदगी के बारे में उनका नज़रिया अनोखे अंदाज़े-बयां में देखिये:
जिंदगी को बहुत संभाला था
कुछ न कुछ टूटता रहा फिर भी। प ४३
जिंदगी हसरतों का दिया है मगर
आंधियों में वही टिमटिमाता रहा। प १२३
उनकी दूरंदेशी, साफ़गोई छलक रही है उनके शब्दों से। हौसलों के परों पर सवार होकर देखिये उनके जज़्बे क्या कह रहे है:
आंधियों से न अब तो डरते हैं
जब से तूफान घर में रहते हैं।
शायरी का यह सफ़र उन्हें बहुत मुबारक हो, और वे इस राह पर अनेक रौशन दिये जलाती रहें, इसी शुभकामना के साथ।
बधाई बधाई
राकेश खंडेलवाल, वाशिंगटन, डी.सी.
हवा में तैरते हैं आज कुछ अल्फ़ाज़ रंगीं हो
तरन्नुम में गज़ल कोई तुम्ही ने आज गाई है
थिरकती है खनकती है तबस्सुम जो फ़िज़ाओं में
तुम्हारे होंठ से फ़िसली हुई चंचल रुबाई है
स्वरों में है घुली सी बांसुरी की एक मादक धुन
जिसे सुनने को आया बज़्म में चल कर कन्हाई है
गज़ल के और भी दीवान शाया हैं अभी होने
ये देवी ने जरा सी बानगी हमको दिखाई है।
शुभकामनायें
<< पीछे : अहसास की रोशनी- 'चराग़े-दिल'… आगे : कविता क्या है? : देवी नागरानी >>
विषय सूची
- अहसास की रोशनी- 'चराग़े-दिल' : समीक्षकः मा.ना.नरहरि
- चराग़े-दिल - कुछ विचार
- कविता क्या है? : देवी नागरानी
- कितने पिये हैं दर्द के, आँसू बताऊँ क्या
- दीवारो-दर थे, छत थी वो अच्छा मकान था
- देखकर मौसमों के असर रो दिये
- उड़ गए बालो-पर उड़ानों में
- आँधियों के भी पर कतरते हैं
- ताज़गी कुछ नहीं हवाओं में
- या बहारों का ही ये मौसम नहीं
- डर उसे फिर न रात का होगा
- बारिशों में बहुत नहाए हैं
- लबों पर गिले यूँ भी आते रहे हैं
- तारों का नूर लेकर ये रात ढल रही है
- अपने जवान हुस्न का सदक़ा उतार दे
- बाक़ी न तेरी याद की परछाइयाँ रहीं
- सपने कभी आँखों में बसाए नहीं हमने
- कैसे दावा करूँ मैं
- झूठ सच के बयान में रक्खा
- तू न था कोई और था फिर भी
- गर्दिशों ने बहुत सताया है
- दर्द बनकर समा गया दिल में
- छीन ली मुझसे मौसम ने आज़ादियाँ
- चराग़ों ने अपने ही घर को जलाया
- हिज्र में उसके जल रहे जैसे
- तेरे क़दमों में मेरा सजदा है
- दिल को हम कब उदास रखते हैं
- ख़्यालों ख़्वाब में ही महफिलें सजाता है
- हमने चाहा था क्या और क्या दे गई
- चोट ताज़ा कभी जो खाते हैं
- वो अदा प्यार भरी याद मुझे है अब तक
- ठहराव ज़िंदगी में दुबारा नहीं मिला
- जाने क्या कुछ हुई ख़ता मुझसे
- अँधेरी गली में मेरा घर
- ये सायबां है जहां, मुझको सर छुपाने दो
- ख़ता अब बनी है सज़ा का फ़साना
- बहता रहा जो दर्द का सैलाब था न कम
- बुझे दीप को जो जलाती रही है
- कोई षडयंत्र रच रहा है क्या
- तर्क कर के दोस्ती फिरता है क्यों
- कितने आफ़ात से लड़ी हूँ मैं
- यूँ उसकी बेवफ़ाई का मुझको गिला न था
- रिश्ता तो सब ही जताते हैं
- बहारों का आया है मौसम सुहाना
- राज़ दिल में छिपाए है वो किस कदर
- नहीं उसने हरगिज रज़ा रब की पाई
- दीवार दर तो ठीक थे, बीमार दिल वहाँ
- हक़ीक़त में हमदर्द है वो हमारा
- सोच को मेरी नई वो इक रवानी दे गया
- सोच की चट्टान पर बैठी रही
- बिजलियाँ यूँ गिरीं उधर जैसे
- सुनामी की ज़द में रही जिंदगानी
- कैसी हवा चली है मौसम बदल रहे हैं
- कितनी लाचार कितनी बिस्मिल मैं
- किसी से कभी बात दिल की न कहना
- ज़िंदगी इस तरह से जीता हूँ
- क्या बताऊँ तुम्हें मैं कैसी हूँ
- कुछ तो इसमें भी राज़ गहरे हैं
- बेसबब बेरुख़ी भी होती है
- बंद हैं खिड़कियाँ मकानों की
- ज़िंदगी रंग क्या दिखाती है
- ज़माने से रिश्ता बनाकर तो देखो
- नगर पत्थरों का नहीं आशना है
- रेत पर घर जो अब बनाया है
- चलें तो चलें फिक्र की आँधियाँ
- दर्द से दिल सजा रहे हो क्यों
- स्वप्न आँखों में बसा पाए न हम
- देखी तबदीलियाँ जमानों में
- लगती है मन को अच्छी
- ज़िंदगी मान लें बेवफ़ा हो गई
- पंछी उड़ान भरने से पहले ही डर गए
- ग़म के मारों में मिलेगा, तुमको मेरा नाम भी
- वो रूठा रहेगा उसूलों से जब तक
- जितना भी बोझ हम उठाते हैं
- जो मुझे मिल न पाया रुलाता रहा
- ख़ुशी का भी छुपा ग़म में कभी सामान होता है
- हैरान है ज़माना, बड़ा काम कर गए
- न सावन है न भादों है न बादल का ही साया है
- भटके हैं तेरी याद में जाने कहाँ कहाँ
- हम अभी से क्या बताएँ
- मिलने की हर खुशी में बिछड़ने का ग़म हुआ
- गुज़रे हुए सुलूक पे सोचो न इस क़द
- देते हैं ज़ख़्म ख़ार तो देते महक गुलाब
- किस्मत हमारी हमसे ही माँगे है अब हिसाब
- आँसुओं का रोक पाना कितना मुश्किल हो गया
- कौन किसकी जानता है आजकल दुश्वारियाँ
- साथ चलते देखे हमने हादसों के काफ़िले
- मेरा शुमार कर लिया नज़ारों में जाने क्यों
- शहर में उजड़ी हुई देखी
- क्यों मचलता है माजरा क्या है
- क्यों खुशी मेरे घर नहीं आती
- मेरा वजूद टूटके बिखरा यहीं कहीं
- रेत पर तुम बनाके घर देखो
- दोस्तों का है अजब ढब, दोस्ती के नाम पर
- उस शिकारी से ये पूछो पर क़तरना भी है क्या
- देख कर तिरछी निगाहों से वो मुस्काते हैं
- मेरे वतन की ख़ुशबू
लेखक की कृतियाँ
- साहित्यिक आलेख
- कहानी
- अनूदित कहानी
- पुस्तक समीक्षा
- बात-चीत
- ग़ज़ल
-
- अब ख़ुशी की हदों के पार हूँ मैं
- उस शिकारी से ये पूछो
- चढ़ा था जो सूरज
- ज़िंदगी एक आह होती है
- ठहराव ज़िन्दगी में दुबारा नहीं मिला
- बंजर ज़मीं
- बहता रहा जो दर्द का सैलाब था न कम
- बहारों का आया है मौसम सुहाना
- भटके हैं तेरी याद में जाने कहाँ कहाँ
- या बहारों का ही ये मौसम नहीं
- यूँ उसकी बेवफाई का मुझको गिला न था
- वक्त की गहराइयों से
- वो हवा शोख पत्ते उड़ा ले गई
- वो ही चला मिटाने नामो-निशां हमारा
- ज़माने से रिश्ता बनाकर तो देखो
- अनूदित कविता
- पुस्तक चर्चा
- बाल साहित्य कविता
- विडियो
-
- ऑडियो
-