चराग़े-दिल

ज़िंदगी मान लें बेवफ़ा हो गई
मौत क्यों हम से लेकिन खफ़ा हो गई।
 
बस्तियाँ आजकल सब परेशान हैं
शायद आबादियों से ख़ता हो गई।
 
दिल की बातें दिमाग़ों से समझा किये
एक ये भी तुम्हारी अदा हो गई।
 
भीड़ में कोई चेहरा शनासा नहीं
रस्म-दुनियाँ भी हमसे जुदा हो गई।
 
सब गुनहगार ‘देवी’ मज़े में रहे
बेगुनाही पे मुझको सज़ा हो गई।

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