चराग़े-दिल

 दिल का अब भरा तो चाहिये
बा-असर उसकी दवा तो चाहिये।

खींच ले मुझको जो वो अपनी तरफ़
शोख़-सी कोई अदा तो चाहिये।

जिनको मिलती है हमेशा ही दग़ा
उनको भी थोड़ी वफ़ा तो चाहिये।

काम अच्छा या बुरा, जो भी हुआ
उसका मिलना कुछ सिला तो चाहिये।

जलते बुझते जुगनुओं की ही सही
जुल्मतों में कुछ ज़िया तो चाहिये।६

मैं मना तो लूँ उसे ‘देवी’, कोई
रूठकर बैठा हुआ तो चाहिये।

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