चराग़े-दिल

शम्अ की लौ पे जल रहा है वो
ख़ुदकुशी वो नहीं तो क्या है वो।

इतना बालिग़ नज़र हुआ है वो
इल्म नीलाम कर रहा है वो।

है उसूलों की कशमकश फिर भी
काले बाज़ार में खड़ा है वो।

वक़्त भी ले रहा है अँगड़ाई
करवटें ज्यूँ बदल रहा है वो।

वो तो ‘देवी’, है दिल की नादानी
जुर्म मुझसे कहाँ हुआ है वो।

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