चराग़े-दिल

यूँ मिलके वो गया है कि मेहमान था कोई
उसका वो प्यार मुझपे इक अहसान था कोई।

वो राह में मिला भी तो कुछ इस तरह मिला
जैसे के अपना था न वो, अनजान था कोई।

घुट घुट के मर रही थी कोई दिल की आरज़ू
जो मरके जी रहा था वो अरमान था कोई।

नज़रें झुकीं तो झुकके ज़मीं पर ही रह गईं
नज़रें उठाना उसका न आसान था कोई।

था दिल में दर्द, चेहरा था मुस्कान से सजा
जो सह रहा था दर्द वो इन्सान था कोई।

उसके करम से प्यार-भरा, दिल मुझे मिला
‘देवी’, वो दिल के रूप में वरदान था कोई।

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