बूढ़ों के लिए ख़ुशख़बरी! 

01-08-2023

बूढ़ों के लिए ख़ुशख़बरी! 

डॉ. अशोक गौतम (अंक: 234, अगस्त प्रथम, 2023 में प्रकाशित)

 

जैसे-जैसे वे सीनियर सिटीजन से सीनियर बूढ़े होते जा रहे हैं, वैसे-वैसे वे अपनी जवानी के दिनों में वापस आने की हर पल अपनी कैपेसिटी से अधिक कोशिश करते रहते हैं। इस कोशिश में कई बार वे इतने थक जाते हैं कि अगले कई दिनों तक तब चारपाई से वे शौच तक को भी उठ नहीं पाते। इतनी कोशिश तो जवानी के दिनों में उन्होंने अपनी जवानी को बचाने के लिए भी नहीं की थी। काश! उस वक़्त जो वे जवानी के दिनों में अपनी जवानी को बचाने की पूरी ईमानदारी से कोशिश करते तो उन पर इतनी जल्दी बुढ़ापा न आता। 

वे अपने बुढ़ापे को भगाने के लिए हफ़्ते में चार दिन छाती तक सफ़ेद हो चुके बालों को काला करते हैं। अपने सिर के बालों को काला करते-करते कई बार काला रंग उनके मुँह तक पर आ जाता है। वे अपनी सफ़ेद मूँछें रंगते हैं। वे अपनी आँखों के ऊपर गिनती की बची भौंहों को काला करते हैं, पर एक उनका कमबख़्त ये बुढ़ापा है कि कहीं न कहीं से बुरी नज़र वालों को दिख ही जाता है। 

उनके पास उनकी लाइब्रेरी में बुढ़ापे में कैसे जवान हुआ दिखा जाए, पर अनको शोध लेखों, नुस्ख़ों का संग्रह है। जितना वे बुढ़ापा आने पर आजकल जवानी को वापस लाने वाले साहित्य का अध्ययन कर रहे हैं, जो जवानी के दिनों में उतना पढ़ लेते तो आज किसी अच्छी पोस्ट से डटकर खा-पीकर रिटायर हुए होते। 

कल पता नहीं उनके हाथ क्या लगा कि वे अपने रँगे बालों, मूछों, भौंहों के साथ ही मेरे यहाँ धमके। उस समय उनकी फ़ुर्ती कूनो में लाए चीतों से भी अधिक थी। उस वक़्त उनको कोई कूनो का चीता देख लेता तो शर्म से पानी-पानी हो जाता। उसे अपने से नफ़रत हो जाती। चीता होने के बाद भी वह हीन भावना से ग्रसित हो जाता। 

उनकी उस फ़ुर्ती को देख कर मैं समझ तो गया था कि आज फिर बुढ़ापे में मल्टी विटामिन की नक़ली गोलियाँ खा जवान दिखाने वाले के हाथों कोई बटेर लग गया है, पर चुप रहा। अच्छा लगा, मरते भैंसे की उम्र में भी वे चीते की तरह चुस्त लग रहे थे। भले ही चुस्ती बनावटी थी। वैसे भी स्वाभाविक यहाँ है क्या? सब कुछ तो बनावटी है। पर इसके बाद जब वे थकेंगे तो उनका क्या हाल होगा, यह सोच कर मैं मन ही मन सिहर रहा था। 

“बधाई हो यार! तू अब बूढ़ा होने से बच गया,” कह वे मेरे गले लगे तो उन्होंने कमबख़्त मेरे चेहरे पर अपनी मूँछों पर लगाया नक़ली काला रंग लगा दिया। 

“किस बात की बधाई? टमाटर सस्ते हो गए क्या?” मैंने अपने चेहरे से पर उनकी मूँछों का लगा काला रंग पोंछते पूछा। 

“नहीं यार! टमाटरों की अब किसे चिंता। अब तो बिन टमाटर खाए टमाटर से लाल होने के दिन आ गए। बधाई दुनिया भर के बूढ़ों और बूढ़ियों को! बुढ़ापे को जवानी में बदलने वाला रासायनिक मिश्रण मिल गया!” वे पागलपन के ख़तरे के निशान से बहुत ऊपर। 

“कहाँ? अपने बग़ल के नीम हकीम के पास?” अपने बग़ल का नीम हकीम भी ग़ज़ब का हुनर रखता है। कैंसर से लेकर अपनी दवा से पैनक्रिया की पत्थरी निकालने की शर्तिया दवाई धड़ल्ले से बेचता है। ये दूसरी बात है कि जिसने एकबार उसकी बनी दवाई खाई वह दूसरी बार उससे दवाई लेने आज तक आता मैंने नहीं देखा। 

“नहीं यार! सात समंदर पार के वैज्ञानिकों ने बनाई है,” ज़िन्दगी में आदमी सब कुछ पाना चाहता है, पर कमबख़्त एक ये बुढ़ापा ही ऐसा है जिसे साधु, संन्यासी, भक्त, आसक्त, राजा, रंक कोई भी नहीं पाना चाहता। पर गंदा सच यह है कि जीव जवान हो या न, उसे बुढ़ापा आता ज़रूर है, हा हू! अब गए दिन बूढ़े होने के। आए दिन सदा जवान रहने के। वहाँ के वैज्ञानिकों ने धरती के तमाम बूढ़ों के हक़ में एक ऐसी दवा खोजी है जिसे गोली में मिलाकर हर बूढ़े को सब्सिडाइज्ड रेट में खिलाकर उसकी उम्र उलटी जा सकती है चुटकियों में। तुझे वहाँ से कितनी गोलियाँ मँगवाऊँ?” कहते उन्होंने जवानी के दिनों सी चुटकी बजाते मेरे ऊपर गिरते अँगड़ाई ली। 

“उम्र उलट सकती है बोले तो?” हालाँकि मैं अभी बूढ़ा नहीं हो रहा हूँ। फिर भी मेरी उनमें दिलचस्पी बढ़ी। गप्प ही सही, पर ज़ालिम दिल बहलाने को ख़्याल अच्छा था। आख़िर कल को बूढ़ा तो मुझे भी होना ही है। वह दवा आ गई तो बूढ़ा होने से पहले ही डोज़ ले लूँगा ताकि बूढ़ा होने का मुझमें ज़माने को कोई लक्षण न दिखे। क्योंकि रोग जब हद से आगे चला जाता है तो वह ठीक होने के बाद भी अपने निशान छोड़़ ही जाता है। चाहे कितनी ही शुद्ध दवा क्यों न खाई जाए। यह दूसरी बात है कि दुआओं के बाद अपने यहाँ सबसे अधिक नक़ली दवाएँ ही मिलती हैं। 

“ये देखो! अभी अभी गूगल से एक रिसर्च पेपर हाथ लगा है। इसमें लिखा है कि एक रासायनिक रिप्रोग्रामिंग के ज़रिए बुढ़ापे को जवानी में उलटा जा सकता है। बस, एक बार ये रिसर्च बाज़ार में आ जाए मेरे ख़ुदा! फिर देखना मेरे जलवे रिसाइकल्ड बुढ़ापे के!” 

“पर अगर जो इस रिप्रोग्रामिंग में बूढ़ा ही उलटा हो गया तो?” मैंने उनसे क़तई भी शंकाग्रस्त न होने के बाद यों ही रिस्किया होते पूछा तो वे मुझे गालियाँ देते अपने माथे पर सिर से टपक पर आए काले रंग को पोंछते जिन पाँवों मुझे ये ख़ुशख़बरी देने आए थे, उन्हीं पाँव मुझे कोसते वापस भी हो लिए, जैसे मुझे सदा जवान होने का वरदान मिला हो। 

हे सात समंदर पार के वैज्ञानिको! भगवान करे आपका शोध सफ़ेद होते बालों पर काला रंग लाए और सृष्टि में एक भी बूढ़ा न रहे। 

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