चराग़े-दिल

दिल अकेला कहाँ रहा होगा
फिक्र का साथ काफ़िला होगा।

याद की बज़्म में जो रहता हूँ
कुछ तो उनसे भी वास्ता होगा।

साथ सूरज के चाँद तारे हों
रात-दिन में न फ़ासला होगा।

कुछ करिश्मे अजीब अनदेखे
कुछ न कुछ उन का क़ायदा होगा।

उम्र भर का सफ़र है जीवन ये
‘मौत’ मंज़िल है, सामना होगा।

साथ अपना निभा सकें कैसे
ख़ुद से जब तक न राबता होगा।

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