राइटरों की नई राइटिंग संहिता

15-06-2020

राइटरों की नई राइटिंग संहिता

डॉ. अशोक गौतम (अंक: 158, जून द्वितीय, 2020 में प्रकाशित)

ये राइटर भी न! सबसे अजीब क़िस्म का प्राणी होता है। दुनिया हँसती है तो हर क़िस्म का राइटर रोता है, और जब दुनिया रोती है तो हर कैटेगरी का राइटर प्रसन्न होता है। जनता की प्रसन्नता में उसका सुख-चैन छिन जाता है और जब जनता शोषित होती है तो उसके भीतर क्रांति जन्म लेती है।

जनता जब तक लॉकडाउन में थी, राइटर प्रसन्न था। क्योंकि वह समाज में लॉकडाउन होने के बाद भी अनलॉक था। 

आम आदमी तक के भीतर दुबका राइटर जितना राइटिंग में पीने के बाद सक्रिय होता है, उतना खाने के बाद नहीं। उसके लिए पीना प्राइमरी है, खाना सेकेंड्री। अच्छा राइटर खाए बिना हफ़्तों जी सकता है, पर पीए बिना वह आधा दिन भी नहीं रह सकता। उम्दा क़िस्म की राइटिंग के लिए खाना मायने नहीं रखता, पीना मायने रखता है। जूनियर राइटर से लेकर सीनियर मोस्ट राइटर तक रचना तभी सहजता से उगलता है जब उसके पेट में दो चार गिलास जाएँ। श्रोता का प्रिय पेय जिस तरह लिम्का-शिम्का होता है उसी तरह राइटर का प्रिय पेय बस एक ही होता है, सोमरस। ब्रांड सबका अपना-अपना। एक दूसरे की जेब की हिसाब से। इधर वह झटके में भीतर तो उधर रचना दिल से बाहर। अजीब है ये राइटिंग का खेल भी। राइटर इधर अपना प्रिय पेय गिलास में डालता है और उधर राइटिंग दिल से बाहर आ निकलती है- ठच्च से। 

वे जो मेरे पड़ोस में रहते हैं, वैसे तो मझोले क़द के राइटर हैं। मतलब, न बड़े, न छोटे। मझोले क़द का राइटर होने का बहुत फ़ायदा होता है। जहाँ कोई ऊँचे क़द का राइटर न हो, वहाँ वे ऊँचे क़द के राइटर हो जाते हैं। और जहाँ ऊँचे क़द के राइटर हों, वहाँ वे निचले क़द के। निचले क़द के राइटर और उसकी राइटिंग को सब माफ़ कर देते हैं।

वैसे राइटर किसी भी सोच-मोच का हो, वह मरने के बाद ही राष्ट्रीय धरोहर हो पाता है। जीते जी तो उसको उसकी राइटिंग भी नहीं पूछती। इधर वह मरा, उधर दूसरे दिन ही वह राष्ट्रीय धरोहर घोषित हो गया। मरने के बाद राष्ट्रीय धरोहर होने के फंडे पर विचार करते हुए एक चालू टाइप के राइटर ने आम राइटरों को सलाह दी है कि उन्हें अपनी मौत, अपनी मौत से पहले एक बार ज़रूर कर-करवा दुनिया को दिखा देनी चाहिए ताकि वह मरने के बाद जीने के पर्दे के पीछे से अपनी आँखों से देख सकें कि राष्ट्रीय धरोहर क़िस्म के राइटर की साहित्यिक आयोजनों में कैसे प्रतिष्ठित फ़ज़ीहत होती है। 

इधर ज्यों ही कोरोना के नाम पर खाते-पीतों ने पेट पर हाथ फेरते एलान किया कि अब लॉकडाउन ख़त्म! जनता बस में ठसाठस भरी सवारियों की तरह अपने सामान की, जान की अब ख़ुद ज़िम्मेदार होगी। अब वह कहीं भी जाने का दुस्साहस कर सकती है। इसलिए अब सामुदायिक संक्रमण के हित में लॉकडाउन खोला जा रहा है। भगवान तक लॉकडाउन से तंग आ गए हैं। सरकार तो सरकार, भगवान तक मंदी का शिकार हो चुके हैं। सरकार के पास अपने कर्मचारियों को भले ही वेतन देने को बजट हो, पर भगवान की आर्थिक हालत बहुत पतली हो गई है। उनके पास अपने पुजारियों को वेतन देने तक को पैसा नहीं। सरकार चाहती है कि अब अपने देश की तमाम गृहिणियों, अगृहिणियों के सौंदर्यार्थ ब्यूटी पार्लरों के कपाट खोल दिए जाएँ। सैलून, बार्बर खोल दिए जाएँ। अवसाद से घिरी जनता के हित में ठेके तो बहुत पहले खोल दिए गए हैं। 

लॉकडाउन में बंद ब्यूटी पार्लरों के चलते सामान्य श्रेणी की सुंदरियों को तो छोड़िए, क्लास वन सुंदरियों तक के सौंदर्य को लॉकडाउन निगल गया है। वे अपने को शीशे के आगे घंटों खड़ा करने के बाद कहीं से भी नहीं पहचान पा रही हैं। लॉकडाउन के बीच भरे-पूरे सिर के बाल वालों की तो छोड़िए, गंजे सिरों तक में बाल इतने बड़े हो गए हैं कि वे ट्वेंटी-ट्वेंटी के जेंटलमैन न लग पाषाणयुग के वन मानुष लग रहे हैं। 

अतः काग़ज़ी सख़्त हिदायतों के साथ सरकार ने सैलुनियों, नाइयों, ब्यूटी पार्लर वालियों को सरकारी ट्रेनिंग देने के बाद अपना काम शुरू करने की इजाज़त दे दी गई है। 

अब सरकार को लगा कि राइटर को भी उसका लेखन क़ानूनन अनलॉक करने के लिए सरकारी तौर पर रस्म अदा करते नए ढंग से राइटिंग हेतु कोराना से बचाने के लिए ट्रेनिंग दी जाए। 

इसी सिलसिले में कल मेरे शहर के हर वर्ग के, हर पार्टी, हर बुद्धि के जाने-अनजाने राइटर तरह-तरह के लोभन-प्रलोभन देकर ग्राउंड में इकट्ठा किए गए, बड़ी मुश्किल से। हर क़िस्म के प्राणी को समझाने के लिए कहीं भी मज़े से इकट्ठा किया जा सकता है, पर एक ही क़िस्म के राइटरों को एक ही मत का होने के बाद भी एक जगह इकट्ठा नहीं किया जा सकता। मैं ग़लत होऊँ तो शर्त लग जाए।

ख़ैर, ट्रेनिंग के बीच लंच, टी-समोसे का प्रावधान था, सो आधे-पौने राइटर लंच-शंच, टी-समोसे के बहाने गिरते-पड़ते वहाँ पहुँच ही गए। लॉकडाउन हटाने की विवशताओं को चमकदार ज़रूरतों के रैपर में लपेट बताने के बाद राइटरों को अब कैसे नए ढंग से लिखना है, यह बताते हुए ट्रेनिंग इंस्ट्रक्टर ने कहा, “हे मेरे शहर के क़िस्म-क़िस्म के किसी राइटर के मरने पर भी एक साथ उसकी अंतिम यात्रा तक में मौन न चलने वाले आदरणीय राइटरो! राइटर ट्रेनिंग में आपका सरकार की ओर से हम हार्दिक स्वागत अभिनंदन करते हैं। 

“साथियो! आप तो जानते ही हो कि कोरोना ने राइटर से लेकर पाठक तक के जीवन को पूरी तरह बदल दिया है। जिस तरह आपने दारू के साथ लिखने की आदत डाली है, उसी तरह अब आपको कोरोना के साथ लिखने की भी आदत डालनी होगी। पर इसके लिए कुछ बातें ध्यान रखना निहायत ज़रूरी रहेगा। जो इन बातों का ध्यान न करते हुए लिखता हुआ पाया जाएगा, उसके ख़िलाफ़ क़ानूनी कार्यवाही हो सकती है, जो उसकी ऊपर पहचान न हुई तो।

“तो हे मेरे शहर के नामचीन राइटरो! अबसे पहले आप अपनी मर्ज़ी के हिसाब से लिखते रहे। अपनी-अपनी सहूलियत के हिसाब से लॉकडाउन में भी अनलॉक होकर लिखते रहे। 

“पर अब, कुछ भी लिखने की छूट आपको इस शर्त पर दी जा रही है कि कुछ भी लिखने से पहले तो छोड़िए, लिखने की सोचने से पहले भी आपको आपको सरकार द्वारा राइटरों को जारी एडवाइज़री के दिशा निर्देशों का कड़ाई से पालन करना ही होगा। यही आपके हित में होगा। भले ही आपका लिखा कहीं छपे या न! 

“अबसे किसी भी तरह की राइटिंग करते हुए आपको सोशल डिस्टेंसिंग रखना बहुत ज़रूरी होगा। भले ही आप गुटों में बँट सोशल डिसेंसिंग को धत्ता बताते रहे हों। लिखने की सोचने से पूर्व आपको अपने हाथ, क़लम, लैपटॉप, मोबाइल इत्यादि जो कुछ भी आप राइटिंग के लिए यूज़ करते हों, उन्हें बार-बार अच्छी तरह से सैनिटाइज़ करना आवश्यक रहेगा। उसके बाद भले ही आप कुछ भी न लिखें। 

“हे देश के तमाम मठों मस्जिदों के राइटरो! अब से कुछ भी राइट करते हुए इस बात का बराबर ध्यान रहे कि आपके हाथ जिनसे आप जिस किसी पर कुछ लिख या टाइप कर रहे हों, उससे फुट्टे से नाप पूरी चार फुट की दूरी पर रहें। सावधान! कोरोना कहीं भी हो सकता है। 

“आज से हर राइटर ने लिखते हुए कुछ पहना हो या न, पर उसने पीपीई किट ज़रूर पहनी होनी चाहिए। लिखते वक़्त उसके हाथों तो हाथों, पाँव तक में ग्लव्ज़ पहने होने चाहिएँ। अब से याद रहे– हर खेमे के राइटर के मुँह पर मास्क तो एक दूसरे को नीचा दिखाते हुए भी होना ही चाहिए, पर उसके चेहरे पर फ़ेस शील्ड भी लगी होनी चाहिए। सरकार नहीं चाहती कि उसका किसी भी श्रेणी का नेगिटिव राइटर पॉज़िटिव हो इस संसार से कूच करे। जीवित रहते राइटर का कोई हक़ यहाँ नहीं, पर हर श्रेणी का राइटर देर-सबेर उसके लिए राष्ट्रीय धरोहर है। और हर होने वाले राष्ट्रीय धरोहर राइटर की रक्षा करना उसका पहला कर्तव्य है।

“हम भी जीतेंगे! कोरोना जीतेगा। जय सैनिटाइज़र घोटाला! जय पीपीई किट स्कैंडल!”

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