हँसना ज़रूरी है

01-02-2020

हँसना ज़रूरी है

डॉ. अशोक गौतम (अंक: 149, फरवरी प्रथम, 2020 में प्रकाशित)

इधर ज्यों ही काश्मीर में बर्फ़ पड़ी कि सोए-सोए भी सरकार की नीतियों के ख़िलाफ़ हरबार मुँह की खाने वाला मोर्चा खोले विपक्ष एक बार फिर हमले वाले मोड में आया। हर क़िस्म के नेता की यही सबसे बड़ी ख़ासियत होती है कि जब वह सत्ता में होता है तो मुँह से खाता है और जब विपक्ष में होता है तो सही होने पर भी मुँह की खाता है। 

सरकार तो सरकार, विपक्ष के नेताओं तक को ज्यों ही इस बात का पता चला कि काश्मीर में बर्फ़ पड़ रही है तो वह अपना सारा विपक्षी-धर्म भूल अपनी अपनी बीवियों, प्रेमिकाओं के साथ काश्मीर को हो लिए। जनता जाए भाड़ में।
देखते ही देखते सारे जनचिंतन करने वाले नेता पार्टीगत दूरियाँ भुला बर्फ़ में मस्ती करने लगे। बर्फ़ में सप्रेमिका मस्ती करते करते अस्सी पार कर चुके युवा, जुझारू, कर्मठ व विपक्ष के नेताजी को अचानक बर्फ़ का आनंद लेते लेते पेट में दर्द होने लगा। पहले तो उन्होंने सोचा कि शायद यह बीवी का श्राप हो। पर जब पेट का दर्द धीरे धीरे बढ़ने लगा तो वे अपने चमचे के साथ उसकी पीठ पर सवार हो वहाँ प्राइवेट हॉस्पिटल न होने के चलते सरकारी अस्पताल मरते क्या न करते के चलते जा पहुँचे। आनन-फानन में डॉक्टर के सामने नेताजी की सॉफ़्ट लैंडिग करवा उनके साथ गए उनके चमचे ने डॉक्टर को अपने पेट के माध्यम से उनके पेट का हाल बताया तो उस वक़्त एक मरीज़ को बड़ी मशक़्क़त के बाद मौत के हवाले कर रहे डॉक्टर ने उनसे बचने की कोशिश कर रहे मरीज़ का इलाज बीच में ही रोक उनके चमचे से सानुनय पूछा, “क्या बात है सर को?”

“जनखायक सॉरी जननायक के पेट में दर्द हो रहा है,” यह सुनते ही सरकारी अस्पताल का डॉक्टर हद से अधिक चुस्त हो गया। इतना चुस्त कि जितना वह अपनी बीस साल की नौकरी में कभी न हुआ था। अपने पर आई ये चुस्ती, कर्तव्यनिष्ठा देख वह ख़ुद भी हैरान था कि आख़िर ये हो क्या रहा है सब? उसने पहले नेताजी के पाँव छुए फिर उनसे दोनों हाथ जोड़ पूछा, “क्या बात है सर?”

“इनके पेट में दर्द हो रहा है!” चमचे ने अपने पेट पर हाथ फेरते कहा तो डॉक्टर ने पुनः पूछा, “कहाँ जैसे सर?”

 चमचे ने फिर अपने पेट पर हाथ रख बताते कहा, “यहाँ जैसे।”

डॉक्टर ने चमचे के पेट पर जहाँ उसने दर्द बताने को हाथ रखा था, वह जगह नोट की और नेताजी से पूछा, “आप फ़िक्र न कीजिए। अब आप सही डॉक्टर के पास आ गए हैं। मेरा ट्रेक रिकार्ड रहा है कि मेरे पास जो भी ज़िंदा आया वह. . . तो सरजी ने शाम को क्या खाया था?"

“ये सत्ताधारी नहीं, विपक्ष के लीड नेता हैं। जबसे विपक्ष में हैं खाने को कुछ मिल ही कहाँ रहा है? पर बेशर्म दर्द को देखो तो. . . कितनी बार इस पेट दर्द से कहा कि हे पेट के दर्द! विपक्षी के पेट में होकर तुम्हें कुछ नहीं मिलेगा। लगना है तो सरकार में बैठे नेताओं के पेट में लगो जो. . . पर नहीं साहब! वे तो लकड़ पत्थर सब मज़े से हज़म किए जा रहे हैं। क्या मजाल जो किसीको बास भी लगने दें। अब तो अपनी सरकार के समय में इन्होंने जो जोड़ा था, वह भी ख़त्म होता जा रहा है," चमचे ने नेताजी की ओर से स्पष्टीकरण दिया तो डॉक्टर ने उनके ट्रीटमेंट की कसी लगाम ढीली की। पर फिर सोचे! कल को जो सरकार में ये आ गए तो? कमाया भगवान काम आए या न पर कमाया हुआ नेता मरने के बाद भी काम आता है। सरकार बननी तो बस नेताओं की ही है। इनकी नहीं तो उनकी। उनकी नहीं तो इनकी। जनता की सरकार तो बनने से रही। यह सोच वह फिर डिएक्टिव से एक्टिव हो गया। 

“कोई बात नहीं सर! अब आप सही डॉक्टर के पास आ गए हो। चलो देखते हैं। हो सकता है पुराना खाया पेट के किसी कोने में फँसा होने के चलते दर्द कर रहा हो," और डॉक्टर पूरी मुस्तैदी से नेताजी के पेट के ऊपर हाथ फेर उसे कभी इस जगह, तो कभी उस जगह से दबाने लगा। जब उसे नेताजी के पेट में वाक़ई को कुछ ठोस न मिला तो वह कुछ देर सोचने के बाद बोला, “पेट तो तक़रीबन आपका सही है।"

“होगा क्यों नहीं! पिछले दस साल से अपोज़ीशन में जो चला हूँ," नेताजी ने कहा और चमचे का पेट पकड़ लिया।
 
“तो लग रहा है बड़े दिनों से आपने सरकार को कोसा नहीं। मेरा अनुभव है कि सरकार के विरुद्ध कोई बयान न देने से भी विपक्ष के पेट में दर्द की संभावनाएँ आम होती हैं। आपने पिछला सरकार के विरुद्ध बयान कब दिया था?"

“यार! यहाँ बर्फ़ में इतना मस्त हो गया कि. . .भूल ही गया कि मैं विपक्ष का लीड नेता हूँ।"

“सर! मुझे तो हंडरेड परसेंट लग रहा क्या, लगता है कि आपके पेट में सरकार के विरुद्ध बड़े दिनों से न दिए बयान का ही ये दर्द है। इसलिए मेरी राय में बेहतर यही होगा कि आप बर्फ़ का आनंद लेना छोड़ जितनी जल्दी हो सके सरकार के विरुद्ध अनाप-शनाप बक अपना पेट हल्का करें तो शर्तिया दर्द से रिलीफ़ मिलेगा," ज्यों ही डॉक्टर ने विपक्ष के लीड नेताजी को नेक सलाह दी तो उन्हें याद आ गया, “अरे हाँ यार! बड़े दिनों से बर्फ़ का आंनद लेते-लेते यह भी भूल गए थे कि हमें सरकार के विरुद्ध बयान देना है, कि हम विपक्ष के लीड नेता हैं । देखो न! इस बर्फ़ में हम अपना दायित्व भी भूल गए। पर चलो, कोई बात नहीं, तुमने याद दिलवा दिया, इसके लिए शुक्रिया। जब कभी हमारी सरकार आएगी तो हम तुम्हें स्वास्थ्य मंत्रालय का डायरेक्टर बना देंगे डायरेक्ट। इतने क़ाबिल डॉक्टर हो तुम और सरकार ने तुम्हें इस बर्फ़ में घुसा रखा है? इस सरकार को क़ाबिलों की परख ही कहाँ? बस, जब तक हमारी सरकार नहीं बन जाती, तब तक टच में रहना," कह वे अपने दिमाग़ पर हाथ फेरते-फेरते डॉक्टर के पास से चमचे की पीठ पर ही उठे और प्रेस क्लब की ओर लपके। 

प्रेस क्लब जा उन्होंने अख़बारों में अपनी उपस्थिति दर्ज करवाते हुए पत्रकारों को हैवी लंच करवाने के बाद संबोधित करते विपक्ष का उत्तरदायित्व निभाते हुए चूहे की तरह हुंकार भरते संबोधित करना शुरू किया, “इस सरकार को इतना भी पता नहीं कि बर्फ़ कहाँ गिरवानी चाहिए? अरे, सत्ता में रहते काश्मीर में बर्फ़ गिरवाने की ज़रूरत ही क्या थी? यहाँ तो अपने आप भी बर्फ़ पड़ती रहती है, वैसे भी आदमी मरते रहते हैं। बर्फ़ गिरवानी ही थी तो दिल्ली में गिरवाते। पर सरकार में इतनी हिम्मत कहाँ जो वह दिल्ली में बर्फ़ गिरवा सके ताकि वहाँ की जनता को भी पता चले कि आख़िर बर्फ़ कैसी होती है। वह भी बर्फ़ का दिल्ली बैठे-बैठे आनंद लेेती। पर नहीं। वहाँ सरकार बर्फ़ क्यों गिरवाएगी? वहाँ तो उनकी सरकार नहीं है न? हम सरकार की अंधा बाँटे रेवड़ियाँ अपनों-अपनों को दे की नीति के सख़्त खिलाफ़ हैं। हम सरकार की इस बर्फ़ गिराने की नीति को क़तई सहन नहीं करेंगे। हम सरकार के इस तानाशाही रवैये की कड़ी से भी कड़ी निंदा करते हैं। सरकार यह न सोचे कि वह विपक्ष की आवाज़ को दबा देगा। वह विपक्ष का गला घोंट देगा। इस सरकार के पास भेदभाव के सिवाय और कुछ नहीं। वह यह न समझे कि विपक्ष मर गया है। विपक्ष अभी भी जैसे-तैसे ज़िंदा है। और वह तब तक हर हाल में ज़िंदा रहेगा जब तक उसे सत्ता नहीं मिल जाती। केवल काश्मीर में ही बर्फ़ गिराना समूचे लोकतंत्र के साथ सरासर अन्याय है। यह देश की उस ग़रीब जनता से अन्याय है जो घर से बाहर नहीं निकलती प्रशासन के डर के मारे। यह जनता के पैसे का दुरुपयोग है। अगर जनता का पैसा विपक्ष के पेट में नहीं जाता जो वह जनता का पैसा सरकार के पेट में भी नहीं जाने देगा। केवल काश्मीर में ही बर्फ़ गिरवाना काश्मीर की जनता से अन्याय है। हम जनता को बताना चाहते हैं कि जब हमारी सरकार आएगी तो हम मुंबई में बर्फ़ गिरवा मुंबई के लोगों को मुफ़्त में बर्फ़ का आनंद दिलवाएँगे। जब हमारी सरकार आएगी तो हम कश्मीर की जनता से वादा करते हैं कि कुर्सी पर बैठते ही सबसे पहले हम उसे बर्फ़ से नजात दिलवाएँगे। सर्दियों में यहाँ बर्फ़ न पड़े, इसके लिए हम अपनी सरकार के आते ही पुख़्ता इंतज़ामात करेंगे। यह तो कोई बात नहीं होती कि हर साल सर्दियों में बर्फ़ का सामना काश्मीर की ही जनता करे। देश की जनता एक सी जनता है। चाहे वह कन्याकुमारी की हो या फिर काश्मीर की। यह कुर्सी पर बैठ कानों में रूईं डाले वे सब ध्यान से सुन लें कि हम आज फिर देश की जनता को वचन देते हैं कि जनता विरोधी सरकार गिरने के बाद हमारी जनता की लोकप्रिय सरकार बनने पर हम शपथ लेने से पहले राजस्थान की जनता को घर बैठे बर्फ़ का उपहार देंगे। हम अपनी सरकार के आने पर देश के हर उस कोने में बर्फ़ गिरवाएँगे जहाँ आज तक बर्फ़ न गिरी हो ताकि ग़रीब से ग़रीब जनता भी अपने घर में बर्फ़ का आनंद ले सके। हम अपनी सरकार आने पर. . .

0 टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी
कविता
पुस्तक समीक्षा
कहानी
विडियो
ऑडियो

विशेषांक में

लेखक की पुस्तकें