
संपादकीय - हमारे त्योहार—जीवन का उत्सव
साहित्य कुञ्ज के इस अंक में
कहानियाँ
कोरोना माय
“अहे दीदी, सुनल्हौ कुच्छू?” पारो माय फुसफुसाती हुई आँखों और अपने हाथों की उँगलियों के इशारे से मुझे कुछ बताने के लिए हाथ में झाड़ू लिए हुए ही मेरे पास उचक आई तो मेरा ध्यान उसकी तरफ़ गया। मन आगे पढ़ें
दोहरा लेखा
(1) रेलवे स्टेशन पर गाड़ी रुकने से पहले ही मैं जान लिया था इन चार सालों में मेरा कस्बापुर बदल लिया है। पिछली बार अपने पिता के देहावसान पर आए रहा था। यह नया पॉलिटेक्निक, यह नया रैज़िडेंट स्कूल, आगे पढ़ें
नीला की डायरी
(नीला मात्र एक नाम नहीं, भारत के बाहर के जीवन का रंग है। यह डायरी रुक-रुक कर, १५ सालों में लिखी गई है, इस से नीला और उसके आसपास के जीवन का पता चलता है) मई 6, 2000 आज आगे पढ़ें
पानी के लिए
“नहर की पानी भरी नालियाँ बहना बंद कर चुकी हैं या कि सहमकर चुपचाप बह रही हैं, नहरवाई (सिंचाई विभाग) के लिए यह अभ्यास नया नहीं है . . . उसका रवैय्या . . . और राजनैतिक समीकरण स्थायी आगे पढ़ें
ब्रह्मराक्षस का अभिशाप
(हॉरर स्टोरी-सुशील शर्मा) (भाग-1) अजय की उँगलियाँ बंजारी माता मंदिर की पुरानी पत्थर की सीढ़ियों पर काँप उठीं। यह नवरात्रि का आठवाँ दिन था, और जिस मंदिर में सामान्यतः ढोल, नगाड़ों और भक्तों की भीड़ का शोर गूँजना चाहिए था, आगे पढ़ें
महके हुए से राज़
बेटा यूएस में बस गया था, तब सीनियर सिटीज़न वृंदा से कई दोस्तों ने कहा, “अकेले इतने बड़े तिमंज़िले महल में कैसे रहोगी, आजकल किरायेदार पर विश्वास भी करना मुश्किल है।” “क्या करूँ, समझ नहीं आ रहा।” कुछ बातें आगे पढ़ें
यह कैसी उड़ान थी?
इस समय आकाश में वह दो-दो उड़ानें भर रही थी—पहली वह जो सपनों से भरी उसके नवजीवन के शुरूआत की, व दूसरी उड़ान यह कि अमेरिका की ओर जा रही उसकी पहली-पहली हवाई-यात्रा। तभी अचानक पन्द्रह दिन की नवविवाहिता आगे पढ़ें
राजा ही सबसे बड़ा भिखारी
एक फ़क़ीर ने अपना पूरा जीवन एक मंदिर के सामने बैठ कर बिता दिया था। मंदिर में दर्शन करने के लिए आने–जाने वाले लोग उसे कुछ न कुछ दान देते रहते थे। फ़क़ीर ने कभी किसी से कुछ माँगा आगे पढ़ें
सुखदायक दुःख
“दीदी, तुम दिल और दिमाग़ के साथ अपनी आँखें खोल कर भी रखतीं तो आज किसी दूसरी औरत द्वारा बरगलाये जाने पर जीजाजी तुमसे दूर न हुए होते।” “अरे नहीं नहीं, तुम्हें जो बाहर से जो दिख रहा है, आगे पढ़ें
हास्य/व्यंग्य
कवि सम्मेलन में कवियों की औक़ात
कवि सम्मेलन में कवियों की औक़ात जितनी रहती है उसी प्रकार वहाँ उनकी व्यवस्था रहती है। एक बार छोटे कवियों का सम्मेलन हुआ तो वहाँ कवियों को दरी पर बैठने के लिये व्यवस्था की गयी। मटमैली, फटी दरी थी। आगे पढ़ें
न घर के रहे, न घाट के हुए
आख़िर मिल ही गया, नोबेल जिसको मिलना था। हिंदुस्तान के महान साहित्यकारों लड़ो और जी भरके लड़ो। जलन ईर्ष्या ख़ूब रख रहे थे। अपनी रचना को लेकर मुँह मियाँ मिट्ठू ख़ूब बन रहे थे। बड़ी-बड़ी तारीफ़ की टिप्पणियाँ कोई आगे पढ़ें
बीबियों का ख़ौफ़
जो मायके जाने से तुम मुझको रोके सैयाँ॥ तो मैं आँखें नोंच लूँगी। जो काम कोई मुझसे करवाए सैयाँ॥ तो मैं उँगली तोड़ दूँगी। मायके में चाहे साजन गोबर ही उठाऊँगी, ससुरार में साजन एक ग्लास पानी भी आगे पढ़ें
मर्यादा पुरुषोत्तम राम और मुक़द्दमा
नन्दन जी के यहाँ रामायण बैठी है। सब मुहल्ले वालों को न्यौता भेजा गया है। सभी को उसमें शामिल होना है। 24 घंटे का आयोजन है। राम नवमी का पर्व है। उसी उपलक्ष्य में आयोजन है। नन्दन जी राम आगे पढ़ें

मेरे पक्के दोस्त
मेरे एक पक्के दोस्त थे। दुःख इस बात का नहीं है कि अब वो नहीं रहे! नहीं, दुनिया में तो वे अभी भी हैं— बस मेरे पक्के दोस्त नहीं रहे। हो सकता है दोस्त भी नहीं रहे . . . आगे पढ़ें
शस्त्र पूजन और बेलन-चिमटा
दशहरा आया, शस्त्र पूजन का दिन। लोग अपने-अपने “शस्त्रों” को चमकाकर फूल-माला चढ़ा रहे हैं। कोई तलवार साफ़ कर रहा है, कोई बंदूक, तो कोई लाठी-भाला। लेकिन महल्ले के कोने में बैठी दो महिलाएँ—सुनयना और कमला—बड़ी गम्भीर मुद्रा में आगे पढ़ें
आलेख
अवसाद का इलाज
एक अनदेखा और ऊपर से इतना दुखदाई अवसाद का रोग यानी कि डिप्रैशन का मानवीय शरीर में धीरे-धीरे पसर जाना अचम्भे का विषय नहीं। किसी अवसाद का कारण यदि अपने किसी प्रिय का दुनिया छोड़ जाना हो सकता है, आगे पढ़ें
इंसानियत तलाशता अनवर सुहैल का उपन्यास ’पहचान’
हिन्दी के प्रसिद्ध उपन्यासकार अनवर सुहैल का बहुचर्चित उपन्यास ‘पहचान’ सन् 2022 में न्यू वर्ल्ड पब्लिकेशन्स, नई दिल्ली से प्रकाशित हुआ है, जिसमें लेखक ने न केवल भारतीय समाज में अपनी सकारात्मक पहचान तलाशते मुस्लिम वर्ग के संघर्ष का आगे पढ़ें
करवा चौथ व्रत: श्रद्धा की पराकाष्ठा या बाज़ार का विस्तार?
करवा चौथ का व्रत भारतीय संस्कृति में पति-पत्नी के अटूट प्रेम और समर्पण का प्रतीक माना जाता है। कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को मनाया जाने वाला यह व्रत विवाहित महिलाओं द्वारा पति की लंबी आयु और आगे पढ़ें

खिद्रापुर कोपेश्वर मंदिर निर्माण
मंदिर की फलदायी सृजन यात्रा के महत्त्वपूर्ण क्षण इस मंदिर के निर्माण में प्रयुक्त टिकाऊ पत्थर सह्याद्रि पर्वतमालाओं से बहुत दूर से लाए गए थे। यह काम मंदिर के कारीगरों के लिए अत्यंत कठिन चुनौतीपूर्ण था। कुशल हाथों ने पीढ़ियों आगे पढ़ें
जीवन की राह-ज़िंदगी के प्रति चाह
जिस तरह दृष्टिहीन व्यक्ति ट्रैफ़िक और भीड़भाड़ के बीच अपना रास्ता सुरक्षित खोज लेता है, उसी तरह हमें भी कोलाहल और चुनौतियों के बीच से गुज़र कर जीवन जीना है। ‘Hear Yourself’ (अपने अंतर्मन को सुनो) पुस्तक में आध्यात्मिक आगे पढ़ें
त्योहारों का सेल्फ़ी ड्रामा
(त्योहार अब दिल से नहीं, डिस्प्ले से मनाए जाते हैं—हम अब त्योहारों से ज़्यादा अपनी तस्वीरें मना रहे हैं) अब त्योहार पूजा, मिलन और आत्मिक उल्लास का नहीं, बल्कि ‘कंटेंट’ का मौसम बन गए हैं। दीपक की लौ आगे पढ़ें
देवी के फ़ॉलोवर्स गरबा खेलते
गत दिनों नवरात्रि के दिनों में टीवी के एक चैनल पर देवी माँ के भक्तों को उल्लासपूर्वक गरबा खेलते देख मन प्रफुल्लित हो उठा। परन्तु दूसरे ही पल कुछ युवाओं की मनोदशा देख मेरी मनोदशा को बदलने में एक आगे पढ़ें
प्रेमचंद की कहानियों में ध्वनित युग
प्रेमचंद एक ऐसे रचनाकार हैं जिसके भीतर अपने पूरे युग की सचेतन आत्मा समाई हुई है। अपने युग के मनुष्यों का कठिन संघर्ष, युग की प्रवृत्तियाँ, मजबूर मानव समूह की आशाएँ, निराशाएँ, दुराशाएँ, प्रेम, छल, कपट, लांछन, मान अपमान, आगे पढ़ें
प्रेमचंद के कथा साहित्य में चित्रित बेरोज़गारी की समस्या
31 जुलाई प्रेमचंद जयंती पर विशेष कथाकार प्रेमचंद के ‘गबन’, ‘कर्मभूमि’ आदि उपन्यासों तथा ‘अपने फन का उस्ताद’, ‘ज्वालामुखी’, ‘बड़े बाबू’, ‘दो सखियां’, ‘दो बहनें’ आदि कहानियों में शिक्षित बेरोज़गारी और बेरोज़गारी से संबंधित संदर्भों का निरूपण हुआ है। आगे पढ़ें
भारत से नये स्वप्न लिये कैनेडा पहुँची, एक आधुनिक स्त्री की यात्रा
सम्पादकीय टिप्पणी: यह आलेख एक आधुनिक भारतीय स्त्री की आत्मकथात्मक यात्रा को सामाजिक और सांस्कृतिक संदर्भों में प्रस्तुत करता है। इसमें नारी-विमर्श, शिक्षा, और सामाजिक परिवर्तन के सूत्रों को आत्मानुभूति के माध्यम से बुना गया है। संस्मरण की शैली आगे पढ़ें
भारतीय वायुसेना दिवस— शौर्य की उड़ान, आकाश का अभिमान
हर साल 8 अक्टूबर का दिन भारतीय इतिहास में गर्व और प्रेरणा का प्रतीक बनकर आता है। यह दिन है—भारतीय वायुसेना दिवस का। साल 1932 में अपनी स्थापना के बाद से भारतीय वायुसेना ने न केवल युद्धक्षेत्र में, बल्कि आगे पढ़ें
मेरी नज़रों में ‘राजस्थान के साहित्य साधक’
डॉ. प्रभात कुमार सिंघल की बहुचर्चित पुस्तक ‘राजस्थान के साहित्य साधक’ में राजस्थान के मूल और प्रवासी साहित्यिकारों के अतिरिक्त अन्य स्थानों से प्रवास करते हुए राजस्थान में दीर्घ समय से रहने वाले साहित्यिकारों के व्यक्तित्व एवं कृतित्व की आगे पढ़ें
मैं दशानन, मेरा अहंकार और मेरी नियति
(विजयादशमी पर आलेख-सुशील शर्मा) मैं लंकापति दशानन, त्रिलोक विजेता रावण! आज मैं जलती हुई लंका की राख पर खड़ा होकर बोल रहा हूँ—उस आग पर, जो केवल मेरे सोने के महल को नहीं, बल्कि मेरे समूचे गौरव, मेरी तपस्या और आगे पढ़ें

मैंने रामकथा क्यों लिखी
(आत्मकथ्य) इसे प्रभु राम की कृपा ही कहना चाहिए कि उनके जीवन और अद्भुत लीलाओं पर लिखी गई मेरी रामकथा ‘फिर आए राम अयोध्या में’, सरयू नदी की क्षिप्र धार की तरह अब तेज़ी से चल निकली है। घर-घर, आगे पढ़ें
लौट आ ओ धार इक उम्मीद की तरह
सम्पादकीय टिप्पणी: शमशेर बहादुर सिंह की प्रसिद्ध कविता— लौट आ ओ धार (काव्य संग्रह: टूटी हुई, बिखरी हुई) में बहुत से आलोचकों ने ‘धार’ को पिता की स्मृति या उपस्थिति से जोड़ा है, विशेषकर जब कविता में लौटने की आगे पढ़ें
विजयदशमी—राम और रावण का द्वंद्व, भारतीय संस्कृति का संवाद
भारतीय पर्व-परंपरा केवल आस्था और अनुष्ठानों तक सीमित नहीं है। यह हमारे सामूहिक इतिहास, लोक-स्मृति और सांस्कृतिक चेतना का प्रतिबिंब है। विजयदशमी इसका जीवंत उदाहरण है। हम इसे हर वर्ष असत्य पर सत्य की विजय के रूप में मनाते आगे पढ़ें
वृद्धजन—अतीत के प्रकाश स्तंभ और भविष्य के सेतु
(वृद्ध दिवस पर आलेख-सुशील शर्मा) कल जब विश्व वरिष्ठ नागरिक दिवस के रूप में मनाया जाएगा, तो यह अवसर मेरे लिए व्यक्तिगत रूप से भी एक महत्त्वपूर्ण पड़ाव लेकर आ रहा है। यह वर्ष की वह मनमोहक घड़ी आगे पढ़ें
हरियाणा के गाँवों से लुप्त होती जा रही लोक परंपरा साँझी
साँझी एक भारतीय लोक परंपरा और लोक कला है, जो मुख्यतः पितृ पक्ष के दौरान मनाई जाती है। इस दौरान अविवाहित लड़कियाँ मिट्टी और गोबर से देवी-देवताओं की मूर्तियाँ बनाकर पूजा करती हैं। “साँझी” नाम संस्कृत शब्द “संध्या” से आगे पढ़ें
समीक्षा

मानव-मनोविज्ञान के महासागर से मोती चुनते उपन्यासकार प्रदीप श्रीवास्तव
समीक्षित पुस्तक: वह अब भी वहीं है (उपन्यास) लेखक: प्रदीप श्रीवास्तव प्रथम संस्करण: 2025 प्रकाशक:भारतीय साहित्य संग्रह 109/108, नेहरू नगर कानपुर 24 लॉकवुड ड्राइव, प्रिंसटन, न्यूजर्सी, यू एस ए ISBN:978-1613018132 एमाज़ॉन लिंक: वह अब भी वहीं है ‘वह अभी आगे पढ़ें

साथी सरहद पार के . . .
कहते हैं ख़ुदा ने इस जहाँ में सभी के लिए किसी न किसी को है बनाया हर किसी के लिए तेरा मिलना है उस रब का इशारा मानो मुझको बनाया तेरे जैसे ही किसी के लिए कुछ तो है तुझसे आगे पढ़ें
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ब्रिटेन की डॉ. वंदना मुकेश को मध्य प्रदेश शासन, संस्कृति विभाग..
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यॉर्क, यूके में भारतीय प्रवासी समुदाय का ऐतिहासिक काव्य समारोह
दिनांक: 26 अप्रैल 2025 स्थान: यॉर्क, यूनाइटेड किंगडम 26 अप्रैल 2025 को यॉर्क इंडियन कल्चरल एसोसिएशन के तत्वावधान में…
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हिन्दी राइटर्स गिल्ड कैनेडा द्वारा रामनवमी के पावन अवसर पर ‘राम तुम्हारे अनंत आयाम’ कार्यक्रम का आयोजन किया गया।…
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‘प्रोफेसर पूरन चंद टंडन अनुवाद साहित्यश्री पुरस्कार’ से..
दिनेश कुमार माली की ‘दिग्गज साहित्यकारों से सारस्वत आलाप‘ एवं ‘शहीद बीका नाएक की खोज‘ पुस्तकों का हुआ विमोचन …
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दुष्यंत संग्रहालय में शान्ति-गया स्मृति सम्मान समारोह-2025..
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भव्यता से मना पं. हरप्रसाद पाठक-स्मृति अखिल भारतीय साहित्य..
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कुछ राब्ता है तुमसे—राष्ट्रीय संगोष्ठी संपन्न
हैदराबाद, 8 अक्टूबर, 2025। मौलाना आज़ाद नेशनल उर्दू यूनिवर्सिटी के गच्ची बावली स्थित दूरस्थ एवं ऑनलाइन शिक्षा केंद्र के…
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युवा उत्कर्ष साहित्यिक मंच संगोष्ठी संपन्न— ‘समकालीन व्यंग्य:..
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केरल की पाठ्यपुस्तकों में त्रिलोक सिंह ठकुरेला की रचनाएँ सम्मिलित
साहित्यकार एवं रेलवे इंजीनियर ‘त्रिलोक सिंह ठकुरेला की रचनाएँ केरल राज्य की विभिन्न पाठ्यपुस्तकों में सम्मिलित की गयी हैं। …
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