भीतर से मैं कितनी खाली

भीतर से मैं कितनी खाली  (रचनाकार - देवी नागरानी)

37. मन का उजाला

 

शब्दों में तीरगी लुप्त हो रही है
सुरंगों से उजाला झाँक रहा है
आँखें चुँधिया रही हैं
शायद
हमारी नज़र को यह नया उजाला
रास आने लगा है
मन को भाने लगा है
हृदय में झिलमिलाने लगा है
अपने भीतर के अँधेरे से निकलकर
नए उजाले में नहा रहे हैं हम। 

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