पानी-पानी

01-07-2025

पानी-पानी

राजेश ’ललित’ (अंक: 280, जुलाई प्रथम, 2025 में प्रकाशित)

 

काग़ज़ पी गये, 
सारा पानी, 
वो खड़े, 
बस देखते रह गए, 
 
जो प्यासे थे, 
प्यासे ही रहे गये, 
प्यास से, 
सूखे होंठों पर, 
जीभ फेरते रह गये, 
 
पूछा बहुत, 
भूख ने प्यास से, 
दावे सब काग़ज़ी 
रह गये। 
 
निढाल यात्री ने, 
पूछा 
पेट भूखा
कंठ सूखा
ठौर छाँव बस धरे रह गए। 
 
बनी तो थी 
योजना बड़ी थी, 
मिलेगा सबको पानी, 
पानी के ख़्वाब थे, 
पानी में बह गए। 
 
यहीं तो रखा था, 
जिस में रखीं थीं, 
वो योजनायें, 
वो काग़ज़ ठंडे बस्ते में रह गये। 

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