भीतर से मैं कितनी खाली

भीतर से मैं कितनी खाली  (रचनाकार - देवी नागरानी)

35. रेत

 

बस रेतीला कण
इक अनबुझी प्यास लेकर
बार बार उस अँचुली की तलाश में
उस एक बूँद की तलाश में है
जैसे पपीहे को
बरसात की वो पहली बूँद
वक़्त के इंतज़ार के बाद मिली
और तिश्नगी को तृप्त कर गई। 
वैसे ही मेरा मन
हाँ, मेरा प्यासा मन
उसी अंतरघट के घात पर
कई बार इसी प्यास को बुझाने
अदृश्य धारा की तलाश में
अनंत काल से भटक रहा है। 

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