भीतर से मैं कितनी खाली

भीतर से मैं कितनी खाली  (रचनाकार - देवी नागरानी)

प्रस्तावना – राजेश रघुवंशी

प्रस्तुत काव्यसंग्रह ‘भीतर से मैं कितनी खाली’ - समकालीन परिस्थितियों और संवेदनाओं का जगत दस्तावेज़।

 

देवी नागरानी जी का नाम समकालीन साहित्यिक जगत में अपना विशिष्ट स्थान रखता है। समाज और सामाजिक परस्थितियों के साथ-साथ मानवीय संवेदनाओं की गहन अभिव्यक्ति आपके साहित्य का वैशिष्ट्य है।

प्रस्तुत सिंधी से हिन्दी में अनूदित काव्य-संग्रह "भीतर से मैं कितनी खाली” करोना काल की विभीषका और उस दरम्यान जीवन के प्रति सकारात्मक नज़रिए को अभिव्यक्त करता है। प्रलयकाल पुकार रहा, मैं मौत के घाट उतारी गई हूँ, क्या करें इत्यादि कविताएँ करोना की त्रासदी को रेखांकित करती हुई पाठकों के सामने आती हैं। तो वहीं उल्लास के पल कविता जीवन को हर क्षण जीने का संदेश देती है। सुख-दुख की लोरी और मेरी जवाबदारी जैसी कविताएँ कठिन परिस्थितियों में भी अपने जीवन की परवाह ना कर दूसरों तक सहायता पहुँचाने वालों के संवेदनशील व्यक्तित्व की सशक्त अभिव्यक्ति करती है।

भीतर से मैं कितनी खाली प्रस्तुत काव्य-संग्रह की प्रतिनिधि कविता है। प्रस्तुत कविता में वेदना अपने चरम रूप में दिखलाई देती है। सारी सुख सुविधाएँ होने के बावजूद यदि व्यक्ति को अपने विचारों की अभिव्यक्ति ना मिल पाए अथवा उसकी चाहतें उसके भीतर ही कैद होकर रह जाएँ तो उसे सुविधापूर्ण जीवन भी नीरस प्रतीत होता है। ठीक ऐसे ही भाव बहाव निरंतर जारी है और यह दर्द भी अजीब शै है कविताओं में बड़ी गहनता से प्रकट हुआ है। जहाँ निशब्दता की बर्फ़ जमी होती है, वहाँ दर्द को शब्द देना वाक़ई मुश्किल होता है। किंतु कवयित्री ने उस असीम दर्द को भी बड़ी ख़ूबसूरती से शब्दबद्ध किया है। यथा यह दर्द भी अजीब शै है कविता का एक अंश देखए :

“दर्द इतना है कि
हर रग में है महशर बरपा
और सुकून इतना कि
मर जाने को जी चाहता है।”

प्रकृति मानव-विरोधी नहीं वरन मनुष्य-जीवन की पूर्णता का आधार है। बस कि उसके सर्वनाश का कारण मनुष्य ना बने । क्योंकि दोनों ही एक-दूसरे पर निर्भर हैं:

“मैं हूँ ना,
अकेले तुम नहीं, अकेले हम नहीं
सब साथ हैं।”
(वे घर नहीं घराने कविता)

रावण जल रहा कविता में समाज में गहराई से अपनी जड़ें जमाती बुराइयों का जीवंत चित्रण किया है। यथा:

“आज सैकड़ों रावण खड़े हैं,
राम का कहीं कोई पता नहीं।”

अलविदा ऐ साथी, माँ व मर्यादा पुरुष आदि कविताओं में स्त्री-जीवन की समस्याओं को व्यक्त किया गया है तो दूसरी ओर लड़ाई लड़नी है अब कविता के माध्यम से कवयित्री स्वतः संघर्ष की बात कहते हुए महिला सशक्तिकरण का पुरज़ोर समर्थन करती हैं।

यादों में वो बातें कविता बीते यादगार दिनों का स्मरण करवाती है। भेदभाव का इतिहास और गुलामी की प्रथा कविताएँ मनुष्य समानता का समर्थन करती हैं। तो यादों की झुग्गी कविता में घर पर काम करने वाली ग़रीब बाई और उसकी बेटी का चित्रांकन हृदयस्पर्शी बन गया है। जनरेशन गैप में जहाँ विश्वास और अविश्वास का अंतर बतलाया गया है, वहीं विष का पीना होगा कविता में विपरीत परिस्थितियों में भी जीवन को समग्रता से जीने का संदेश दिया गया है।

अस्तु, केवल इतना ही कहना चाहूँगा कि देवी नागरानी जी ने प्रस्तुत काव्य संग्रह में करोना काल की भयावह परिस्थितियों, जीवन संघर्षों और जीवन के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण को बनाए रखने की बात कही है। मैंने केवल कुछ कविता रूपी फूलों की सुगंध ही आपके सामने प्रस्तुत की है। ऐसी ही अनगिनत कविता रूपी फूलों की सुगंध काव्य संग्रह में सर्वत्र बिखरी हुई है।

निश्चित ही यह काव्य-संग्रह आधुनिक समाज की आधारशिला सिद्ध होने के साथ-साथ समाज को जीवन को एक नई दिशा भी प्रदान करेगा। इसी अपेक्षा के साथ . . .

राजेश रघुवंशी,
महाराष्ट्र, मुंबई।
भ्रणसंवाद: 9763564359

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