भीतर से मैं कितनी खाली

भीतर से मैं कितनी खाली  (रचनाकार - देवी नागरानी)

29. यह दर्द भी अजीब शै है

 

दर्द नहीं दामन में जिनके
ख़ाक वो जीते ख़ाक वो मरते
विषय है, वस्तु है
पर समय की माँग कुछ और है
दर्द की गहराई की इंतिहा इस रचना में डूबकर देखिए:
 
दर्द इतना है कि
हर रग में है महशर बरपा
और सुकून इतना कि
मर जाने को जी चाहता है
कमबख़्त इतने सारे दर्द पाकर
कौन बेसुकून होकर मरना चाहता है। 

<< पीछे : 28. तनाव आगे : 30. रात का मौन >>

लेखक की कृतियाँ

साहित्यिक आलेख
कहानी
अनूदित कहानी
पुस्तक समीक्षा
बात-चीत
ग़ज़ल
अनूदित कविता
पुस्तक चर्चा
बाल साहित्य कविता
विडियो
ऑडियो