अपने हाथों से

01-07-2025

अपने हाथों से

कपिल कुमार (अंक: 280, जुलाई प्रथम, 2025 में प्रकाशित)

 

वे लोग 
कम पढ़े-लिखे थे 
उनका 
कभी पैसों से 
साक्षात्कार नहीं हुआ। 
 
वे ज़मीनों को 
खोदते 
और उनमें अपनी रोटियाँ उगाते 
अधिकतर समय 
उनके हाथों में फावड़े होते। 
 
उन्होंने ज़मीन को अपनी देह का हिस्सा समझा 
उस ज़मीन को बेचना 
वेश्यावृत्ति से भी है जघन्य कृत्य माना
उस ज़मीन से विस्थापन 
मानों माँ को छोड़ देने जैसा था। 
 
उनकी 
अगली पीढ़ियाँ 
उनसे बहुत ज्यादा-पढ़ी लिखी निकलीं। 
 
उन्होंने उस ज़मीन को खोदकर 
रोटियाँ नहीं उगाई 
उन्होंने उसे बेचकर 
अपने हाथों में उठाई 
शराब की बोतले
व्यसन की वस्तुएँ 
और 
चुना एक ऐसा रास्ता 
जिससे सभ्यताएँ पनपती नहीं
बल्कि नष्ट होती है। 
 
मैं अपनी आँखों से देख रहा था
अपनी सभ्यता को नष्ट करते हुए, 
लोगों को
अपने ही हाथों से। 

1 टिप्पणियाँ

  • 23 Jun, 2025 10:41 PM

    बहुत सुन्दर, हार्दिक शुभकामनाएँ।

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