भीतर से मैं कितनी खाली

भीतर से मैं कितनी खाली  (रचनाकार - देवी नागरानी)

12. रैन कहाँ जो सोवत है

 

सन्नाटा आवाज़ दे रहा है
पथिक को
रास्ता वही है
नज़ारे बदले हैं तो क्या हुआ? 
तू निडर हो चल डगर पर
सामने मंज़िल तेरी
नयनों ने देखे न थे जो
वो नज़ारे देखे ले
सोच कर बदलाव पर
लिख ले कुछ प्रभाव पर
क्यों है लगता बेवजह सब
नहीं, नहीं बेवजह कुछ भी नहीं
वजह है, ठोस वजह
प्रकृति के इशारे अनगिनत ‘देवी'
मुझको, तुमको और सभी को
जागने को उकसा रहे हैं
इक संदेश देकर इशारों से
चेतना को जगा रहे हैं
आज सुप्रभात सुंदर सूर्य किरणों से
हम सबका स्वागत कर रही है। 

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