होनहार युवराज
संजीव शुक्ल
आज दरबार की अति गोपनीय मीटिंग के लिए राजा पूरे आधे घंटे लेट हो गए थे, सो वे बड़े स्पीड में चल रहे थे। इसी तेज़ी के चक्कर में तलवार उनके दोनों पैरों के बीच में आ गई। वे लरबराते हुए गिरते-गिरते बचे। अंगरक्षकों ने उन्हें रोक लिया।
वे जब जब गिरने को होते कोई न कोई उन्हें गिरने से रोक ही लेता। राजा होने के यही सब फ़ायदे थे।
लेकिन कई बार राजा ख़ुद ही गिरना चाहते। कभी सहानुभूति बटोरने के चक्कर में, तो कभी आचरण से। लेकिन चूँकि सार्वजनिक जगहों पर शुभेच्छुओं की उपस्थिति के चलते मनमाफिक गिरना सम्भव नहीं था, इसलिए वे या तो अकेले में गिरते या फिर भरोसेमंद साथियों की मौजूदगी में गिरना पसंद करते। नीतिविषयक मामलों में वे मैक्यावली को फॉलो करते।
ख़ैर तलवार के टाँगों के बीच आ जाने से ग़ुस्साए राजा साहब ने अपनी तलवार अंगरक्षक को पकड़ा दी। लेकिन मुकुट का क्या वह तो तिरछा होते ही ज़मीन पर गिर गया था। राजा ने उसे फिर हाथ में ही पकड़ लिया, वैसे ही जैसे आजकल के लड़के हेलमेट पकड़ लेते हैं।
सिंहासन पर बैठ राजा ने मुकुट फिर से धारण कर लिया। मुकुट के बिना वह सिंहासन पर न बैठते। उन्हें सिंहासन की क़ीमत पता थी। जाने कितनी दुरभिसंधियों को रचकर यह मुकुट हस्तगत किया गया था।
बैठते ही आज्ञा दी—दरबार की कार्यवाही शुरू की जाए। अति गोपनीय बैठक के चलते बैठक में विदेशी मामलों को देख रहे मंत्री तथा भावी राजा के रूप में उनका पुत्र उपस्थित था।
पुत्र को इस तरह की मीटिंगों में इसलिए रखा जाता ताकि वह भावी राजकाज के लिए प्रशिक्षण ले सके।
फिर उन्होंने बिना भूमिका के ही अपने मंत्री को खड़ा किया और पूछा कि मंत्री जी क्या अपने पड़ोसी देश से उसके विरोधी देश पर हमला करने को लेकर कुछ बात हुई।
“नहीं राजन पड़ोसी तो इस समय वैसे ही एक अन्य राज्य के साथ युद्ध में उलझा है। और फिर जिस देश पर आप हमला करने की बात कर रहे हैं उसके साथ अभी मामला इतना नहीं बिगड़ा है कि हमला किया जाय।”
“ओफ़्फ़ो, अरे भाई मामले का क्या है, वह तो अपने हाथ में है। जब चाहे तब बिगाड़ दो,” राजा ने रोशनी दिखाई। “और फिर बात उसूलों की है। जब उसूलों पर आँच आए तो टकराना ज़रूरी है।” राजा ने अपना अभिमत दिया।
फिर बात को गंभीरता का पुट देने की गरज से सिंहासन पर आगे खिसकते हुए राजा ने धीरे से कहा, “ऐसा है, तुम पड़ोसी से बात करो। अगर वह न तैयार हो तो फिर हम ख़ुद ही उस देश पर हमला कर दें।”
“फिर भी राजन . . .”
“देखो ज़्यादा समय बर्बाद न करो।”
“ठीक है राजन पर आप ऐसा कर क्यों रहे हैं?”
“सीज़फ़ायर के लिए,” राजा ने खुलकर कहा।
“तो फिर युद्ध करना ही क्यों . . .?” मंत्री जी ने अचकचाते हुए पूछा।
“अरे भाई हम शान्ति प्रेमी हैं यह जताने के लिए।
“भाई शान्ति तो तभी आएगी जब अशान्ति होगी और अशान्ति तब होगी जब युद्ध होगा और जब युद्व होगा तभी न सीज़फ़ायर होगा!” राजा ने मौलिक व्याख्या दी।
“सीज़फ़ायर करवाने से हमारी अहमियत बढ़ेगी,” राजा ने दूर की बात बताई।
युवराज बड़े ग़ौर से अपने पिता को सुन रहा था।
“मतलब कि आग बुझाने के लिए पहले आग लगाई जाय,” युवराज ने मुस्कुराते हुए कहा।
“वत्स तुम्हारी सीखने की गति तीव्र है,” कहकर राजा भी मुस्कराए।
“हाँ तो मंत्री जी आपका क्या ख़्याल है?”
“राजन आपकी जय हो। आपका विचार उत्तम है।”
“मंत्री जी सब कुशल तो है राज्य में? कोई विशेष बात तो नहीं?” राजा ने उस चैप्टर को बंद करते हुए औपचारिकता में पूछा।
“जी राजन, जनहित के संदर्भ में एक मामला है।”
“बताइए!”
“राज्य में नवयुवकों को बड़े पैमाने पर रोज़गार देने का प्रस्ताव विचाराधीन है। आपके निर्णय की प्रतीक्षा है। सब आपकी तरफ़ देख रहे हैं।”
“देख रहे हैं तो देखने दो,” युवराज ने मंत्री को बीच में टोकते हुए कहा। “फ़िलहाल बड़े पैमाने पर रोज़गार देने से राजकोश पर भार बढ़ेगा,” युवराज ने राजा की तरफ़ से फ़ैसला सुनाते हुए कहा।
“लेकिन युवराज बेरोज़गारी बढ़ने से धीरे-धीरे असंतोष फैलेगा। विद्रोह का भी डर है।”
“मंत्री जी कुछ नहीं होगा। मीडिया को काम पर लगा दो। देश और धर्म रक्षा के लिए लोगों को त्याग करने का आह्वान किया जाय। धर्म रोज़गार की माँग पर भारी पड़ेगा। विधर्मियों का भय दिखाइए ताकि एकाग्रता बनी रहे। फ़िलहाल कुछ अवधि तक रोज़गार भत्ता शुरू कर दिया जाय। फिर देखिए कैसी जयजयकार होती है।”
“वाह! पुत्र वाह!!” राजा पुलकित होते हुए बोले।
“लेकिन राजन एक और विपदा आन पड़ी है। सुदूर प्रांत में महामारी फैल गई है, चिकित्सकीय सुविधा के अभाव में बहुत मौतें हुईं हैं। लोग बहुत बुरा-बुरा बोल रहे हैं।”
“क्या-क्या बोला जा रहा है हमारे बारे में?” राजा ने उत्सुकता से पूछा।
“राजन प्रोटोकॉल के चलते वह सब हम नहीं बता सकते। हमारी भी कुछ गरिमा है। फिर युवराज भी सामने हैं।”
“ख़ैर छोड़ो, अब यह बताओ कि क्या किया जाय?” राजा ने लंबी साँस छोड़ते हुए पूछा।
“राजन टीवी पर राष्ट्र के नाम संबोधन में संवेदना व्यक्त कर दीजिए। जनता इसी में ख़ुश हो जाएगी। अब मरे हुए को तो वापस लाया नहीं जा सकता।”
तभी युवराज ने फिर राजा और मंत्री के बीच हो रही बातचीत में जगह बनाते हुए बोले, “इतने भर से काम नहीं चलेगा। हमें संतुष्ट ही नहीं, प्रसन्न भी करना है।”
“वह कैसे?” राजा और मंत्री एक स्वर में बोले।
“वह ऐसे कि टीवी पर घोषणा चला दी जाय कि सभी मृतकों का राजकीय सम्मान के साथ संस्कार किया जाएगा और सभी को शहीद का दर्जा दिया जाएगा।”
यह सुनकर राजा और मंत्री दोनों उछल पड़े। राजा ने पुत्र को बाँहों में भर लिया।
मंत्री ने कहा, “राजन अब युवराज की तरफ़ से आपको निश्चिंत हो जाना चाहिए।”
मुस्कुराते हुए राजा ने कहा कि राजपंडित से युवराज के राज्याभिषेक के लिए समय निकालने को कहा जाय।
“राजन और युवराज की जय हो!” कहकर मंत्री आज्ञा पालन के लिए निकल लिया।
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