भीतर से मैं कितनी खाली

भीतर से मैं कितनी खाली  (रचनाकार - देवी नागरानी)

16. वे घर नहीं घराने हैं

 

वे घर नहीं घराने हैं
डालियों पर जो घरौंदे हैं
तिनके तिनकेे के घेरे में
परिंदे अनेक पीढ़ियों से बसे हैं
उपज ये परिवेश की और प्यार की
अपने सीने में लकिर जो चले
साथ नहीं वो छोड़ते, 
अपने होने का देकर दिलासा
सुख दुख के वो साथी बनते
राहत दिल को देते रहते
जैसे कह रहे हों मौन में
मैं हूँ ना, अकेले तुम नहीं
अकेले हम नहीं
सब साथ हैं। 

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