भीतर से मैं कितनी खाली

भीतर से मैं कितनी खाली  (रचनाकार - देवी नागरानी)

7. उम्मीद नहीं छोड़ी है

 

खो सी गई हूँ
सोच की उन ख़लाओं में
उन वादियों में जहाँ कभी नहीं गई
कब जाऊँगी पता नहीं
उम्मीद नहीं छोड़ी है पर
हौसला पस्त नहीं हुआ मगर
बस हालातों ने घेर रखा है
फिर भी
आँख बंद करके देख लेती हूँ
सुंदर दृश्यों को मन की आँखों से
बिन बोले बिन डोले
क्योंकि सफ़र में समय साथ है
रास्ता सामने है
बस समझ लो मंज़िल वहीं है
जहाँ मैं खड़ी हूँ
समय के साथ

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